पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१६९

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काम ] १४७ धर्मसाधन, योगाभ्यास यह सब क्या है ? बहुतेरे झूठमूठ कह देते हैं, काम से छुट्टी पार्व तो ऐसा करें । वाह ! भका काम से किसे छुट्टी है ? हमारे शरीर की उपज काम हो से है। शरीर स्वयं काम का विकार है। फिर भला कही अंगूठी सुवर्ण से छुट्टी पा सकती है ? हम तो हमी हैं, ईश्वर स्वयं सर्वशक्तिमान अर्थात् सब काम कर सकने वाला है। हम लोग प्रेम सिद्धांतो उसे 'कोटि काम कमनीय' मानते हैं तो हमारे शुष्क- वादी वेदान्ती भाई भी उसे पूर्ण काम अथवा निष्काम कहते हैं। वाहरे काम ! सर्वथा निर्लेप, निरंजन, नारायण को भी न छोड़ा ! हमारी समझ में नहीं आता है कि शिव जी ने कामदेव का नाश क्यों किया! संसार की उत्पत्ति, पालन, प्रलय, भक्तों की मनोर्थ प्रति, पार्वती जी का विवाह, गणेश जी का जन्म, सब बात तो बनी ही हैं, फिर भोला बाबा को इस लीला में क्या गुप्त भेद है ! काम के भेद भी परमात्मा के भेद से कुछ हो कम हैं। भला काम, बुरा काम, मजेदार काम, भद्दा काम, मोटा काम इत्यादि काम का स्वरूप कोई नहीं कह सकता कि कैसा है। पर काम सब जानते हैं। काम बनता है, काम बिगड़ता है, काम चलता है, काम अट कता है, काम पड़ता है, काम आता है, काम होता है, काम लगता है, काम छुटता है, काम बढ़ता है, काम निकलता है, काम फैलता है, काम निपटता है, काम जमता है, काम उखड़ता है इत्यादि, कहाँ तक कहें, एक न एक काम सभी को जगतकरता ने सीप रखा है। किसी का काम खुशामद, किसी का म्वार्थपरता, किसी का लोकनिंदा, किसो का परधनहरण, किसी का जातिद्वेश, किसी का करट, किसी का बेशरमो, किसी का डरपोकनापन, किसी का शुकलोचनत्व ( तोता- चश्मी ), किसी का लहू लगा के शहीदों में मिलना। अस्तु, ऐसे गंदे काम वालों का नाम लेके कौन मुंह गंदा करे । कौन खरी कह के बैरी बने। इससे हमें प्रेमा शक्ति ईश्वरभक्ति, काव्यरसिकता, सरलता,सहृदयता, स्वधर्माभिमान,देशममता, जातिहितैषिता. निजमापाभावुकता, जगतमित्रतादि कामों में तत्पर रहने वालों की स्तुति प्रिय है, जिस में अपना मन शांत हो, वाणी पवित्र हो तथा दूसरों को उपदेश हो, सत्कर्म में रुचि हो सिद्धांत यह कि 'कोऊ काहू में मगन कोऊ काहू में मगन' है। जड़ चेतन, पशु पक्षी. कोट पतंग, सभी काम में संलग्न हैं तो हम भी संसार से बाहर नहीं हैं। हम भी नित नयी बातें बना के तुम्हें रिझाने का काम मुड़िआए हैं। तुम मानो न मानो, कुछ हमारे कहे पर चलो न चलो, तुम्हें यखतियार है। हम अपने काम से न चूकेंगे, तुम्हारी तम जानो तुम्हारा काम जाने, पर इतना याद रहे कि अपना काम देखे रहोगे तो सब तरह अच्छा है, नहीं तो निकम्मे कहलाओगे । खं० ५, स० २ (१५ सितंबर ह० सं० ४)