पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१७१

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प्रतापचरित्र ] हमारी सर्कार को सचमुच सहायता किसने दी थी ? हमी ने । क्योंकि हम राजभक्त हैं । राजभक्ति हमारा सनातन धर्म है । इतर उपधर्मो का हम तभी तक विचार करते हैं जब तक हमारी राजभक्ति में हानि न हो। खाने पीने में छुवाछूत, जहाज पर से विदेशजात्रा, बिना स्नान किए हुए भोजन इत्यादि हमारे धर्म के अंग हैं । पर राजा का काम लगे तो हमें उनमें किंचित आग्रह नहीं है। यह बात हम कई बेर दिखा चुके हैं फिर भी हमारी राजभक्ति में कोई संदेह करे तो लाचारी है । शरीफ हिंदू,मुसलमानों से ऐसा संदेह करना दूरदर्शिता की हत्या लेना है । खं० ५, सं० २ (१५ सितंबर ह० सं० ४) प्रतापचरित्र इस नाम से निश्चय है कि पाठकगण समझ जायेंगे कि प्रतापनारायण मिश्र का जीवन चरित्र है पर साथ ही यह भी हास्य करेंगे कि जन्म भर में स्वांग लाए तो कोढ़ी का । प्रताप मित्र न कोई विद्वान, न धनवान, न बलवान, उसके तुच्छ जीवनवृतांत से कौन बड़ी मनोरंजना व कौन बड़ा उपदेश निकलेगा। हाँ, यह सच है। पर यह भी बुद्धि- मानों को समझना चाहिए कि परमेश्वर का कोई काम व्यर्थ नहीं है । जिन पदार्थों को साधारण दृष्टि से लोग देखते हैं वे भो कभी २ ऐसे आश्चर्यमय उपकारपूर्ण जंचते हैं कि बड़े २ बुद्धिमानों की बुद्धि चमत्कृत हो रहती है। एक घास का तिनका हाथ में लीजिए और उसकी मृत एवं वर्तमान दशा का विचार कर चलिए तो जो २ बातें उस तुच्छ तिनके पर बोती हैं उनका ठीक २ वृतांत तो आप जान हो नहीं सकते, पर तो भी इतना अवश्य सोच सकते हैं कि एक दिन उसकी हरीतिमा ( सब्जी ) किसी मैदान की शोभा का कारण रही होगी। कितने बड़े २ रूप-गुण बुद्धि-विद्यादि-विशिष्ट उसके देखने को आते होगे, किसने ही छुद्र कीटों एवं महान व्यक्तियों ने उस पर बिहार किया होगा, कितने ही क्षुधित पशु उसे खा जाने को लालायित रहे होगे, अथवा उसे देख के जाने कौन डर गया होगा कि इसे शीघ्र खोदो नहीं तो वर्षा होने पर घर कमजोर कर देगा; सुख से बैठना कठिन पड़ेगा। इसके अतिरिक्त न जाने कैसी मंद प्रखर वायु कैसी अपघोर वृष्टि, कसी कोमल कठोर चरण प्रहार का सामना करता २ आज इस दशा को पहुंचा है। कल जाने किसी आँखों में खटके, न जाने किस ठौर के जल व पवन में नाचे, न जाने किस अग्नि में जल के भस्म हो इत्यादि । जब तुच्छ बस्तुओं का चरित्र ऐसे २ भारी विचार उत्पन्न करता है तो यह तो एक मनुष्य पर बीती हुई बातें हैं । सारग्राही लोग इन बातों से सैकड़ों भली बुरी बातें निकाल सैकड़ों लोगों को चतुर बना सकते हैं। सच पूछो तो विद्या, जिसके कारण बड़े २ विद्वान जन्म भर दूसरे कामों से रहित होके केवल विचार करने व ग्रंथ लिखने में संलग्न रहते हैं,