पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१७२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१५० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली जिसके कारण मर जाने पर भी हजारों वर्ष तक हजारों बुद्धिमान उनकी महिमा गान करते हैं, उस विद्या का मूल बालकों के और पागलों के विचार है। हरी २ डाल में लाल २ पीले २ फूल कहाँ से आये, पीला और नीला मिल के हरा क्यों बन जाता है, इत्यादि प्रश्नों का ठीक २ उत्तर सोच के निकालना ही पदार्थ विद्या है। फिर मनुष्य कहाँ जन्मा, क्या २ किया, क्या देखा, किस २ से कैसा २ बर्ताव रखा, इन बातों का वर्णन क्या लाभ शून्य होगा? विद्या जानकारी का नाम है, फिर क्या मनुष्य का वृतांत जानना विद्या नहीं है ? हमारी समझ में तो जितने मनुष्य हैं सबका जीवन लेखनी- बद्ध होना चाहिए। इसका बड़ा लाभ एक यही होगा कि उसकी भलाई को ग्रहण करके, बुराइयों से बच के दूसरे सैकड़ों लोग अपना भला कर सकते हैं। हमारे देश में यह लिखने की चाल नहीं है इससे बड़ी हानि होती है । मैं उनका बड़ा गुण मानूंगा जो अपना वृतांत लिख के मेरा साथ देंगे, जिसके अनेक मधुर फल लेखकों को यदि न भी मिले तो भी बहुत दिनों तक बहुत से लोग कुछ लाभ उठावेंगे। देशभक्तों के लिए यही बात क्या थोड़ी है। इसमें कोई गुण व दोष घटाने बढ़ाने का व कोई बात छिपाने का विचार नहीं है। सच्चा २ हाल लिखूगा। इससे पाठक महोदय यह न समझें कि किसी पर आक्षेप व किसी को प्रशंमादि करूंगा। यदि किसी स्थान पर नीरसता आ माय तो भी, आशा है क्षमा कीजिएगा, क्योंकि यह कोई प्रस्ताव नहीं है कि लेखशक्ति दिम्बाऊ। यह जीवनचरित्र है। ____ अपना जीवनचरित्र लिखने के पहिले अपने पूर्व पुरुषों का परिचय देना योग्य समझ के यह बात सच्चे अहंकार से लिखना ठीक है कि हमारे आदि पुरुष भगवान विश्वा- मित्र बाबा हैं ! जिनके पिता गाधि महाराज और पितामह कुशिक महाराजादि कान्य- कुब्ज देश के राजा थे। पर हमारे बाबा ने राज्य का झगड़ा छोड़ छाड़ के निज तपोबल से महर्षि की पदवी ग्रहण की और यहां तक प्रतिष्ठा पाई कि सप्त महर्षियों में चौथे रिषि हुए। कश्यप, अत्रि, भारद्वाम, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ यह सप्तर्षि हैं। राज्य छोड़ने पर भी रानसी ढंग नहीं छोड़ा ! यदि सातों रिषियो की मूर्ति बनाई जाय तो क्या अच्छा दृश्य होगा कि तीन रिषि इस पार्श्व में तीन उस पाश्व में होंगे और बाबा मध्य में ! निज तपोबल से उन्होंने स्वर्ग में बहुत से तारागण एवं पृथिवी पर बहुत से अन्न और पशु भी उत्पन्न किए थे ! यह बात अन्य मतावलंबी अथच आज. कल के अंग्रेजीबाज न मानें तो हमारी कोई हानि नहीं है क्योकि सभी के मतप्रवर्तक और वंशचालकों के चरित्रों में आश्चर्य कम पाए जाते हैं, फिर हमी अपने बाबा की प्रशंसा में यह बातें क्या न मानें । ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह अपने निज के लोगों को चाहे जैसी सामर्थ दे सकता है। भगवान कृष्णचंद्र का पर्वत उटाना, महात्मा मसीह का मुरदे जिलाना, हजरत मुहम्मद का चन्द्रमा काटना इत्यादि यदि सच हैं तो हमारे बाबा का थोड़ी सी सृष्टि बनाना भी सत्य है । यदि उन बातों का गुप्तार्थ कुछ और है तो इस बात का भी गुप्तार्थ यह है कि जगत के अनेक पदार्थों का रूप, गुण, स्वभाव आदि पहिले २ उन्होंने सबको बतलाया था इसी से उस काल के लोग उन पदार्थों को