पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१८८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-ग्रंपावली 'हिन्दोस्थान' में उस छन्द को लिख के हमें प्रोत्साहित किया। यह इस बात का एक पुष्ट प्रमाण है कि आल्हा भी स्वादु से शून्य औ टकसाल से बाहर नहीं है। इससे हम आथा करते हैं कि हमारे दूसरे सहयोगी भी इस मधुर ध्वनि को अपने पत्रों में लिखके रसिकों को आनन्द देते रहें। विशेषतः जिन महाशयों को हिन्दी कविता का अच्छा अभ्यास नहीं है वे दूसरे छन्दों तथा ब्रजभाषा की टांग न तोड़ के अपने प्रांत की बोली में इस छंद को लिखा करें तो उन्हें अधिक सुभीता हो। क्योंकि यह सीषा छंद है, अशुद्धि का बहुत भय नहीं है। तुक के मिलने की भी इसमें विशेष चिन्ता नहीं होती क्योंकि यह हमारा शून्य वृत्त ( ब्लैकवर्स ) है। बड़े २ व्याख्यान लिखने के लिए दोहा, चौपाई, लावनी और आल्हा से अधिक और छन्दों में सुभीता नहीं होता। इन्हें जितना चाहें बढ़ा सकते हैं। पर सिवाय सादी दिहाती बोली के इसका मजा और भाषा में न मावेगा। विशेषतः आजकल परिष्कृत हिन्दी और 'प्राप्त' 'ध्याप्त' 'समाप्त' आदि कठिन काफिए इसका मजा और भी बिगाड़ देते हैं। हिन्दोस्थान' में कांग्रेस आदि का आल्हा यद्यपि बहुत अच्छा है पर यदि सीधी गंवारी और बिना काफिया होता तो सोने में सुगन्ध हो जाती अथच उस्का मुख्य उद्देश्य भी बहुत ही अधिक फलता । हमारे यहां लोगों के जीवनचरित्र नहीं लिखे जाते इससे बड़ी हानि होती है। यदि यों होता तो हम यह भी लिख सकते फि पहिले पहल आल्हा को किसने वा विन्होंने प्रचार दिया । पर अनुमान यह कहता है कि मुसलमानी राज्य के आरंभ ही में इसका अधिक प्रचार हुआ और प्रचारक बड़े चतुर और रसिक थे। उसने जानबूझ के अपठित समुदाय को सामाष्टिक उद्देश्य की ओर झुकाने के लिए ऐसी बोली और ऐसा ढंग स्वीकार किया था । बहुत से पद अति गंभीर आशय से पूर्ण हैं, जो प्रत्येक अल्हइत के गाने मे आते हैं, जिनमें कुछ हम यहाँ लिख के अपने पाठकों को काव्यानन्दयुक्त उपदेश किया चाहते हैं । कई एक पोथियां जो आल्हखंड के नाम से छपी हैं, उनमें आल्हा ऊदल का इतिहास मात्र है, आल्हा की रसीली बातें कम हैं और अब अल्हैत भी उन सब बातों को नहीं गाते । इसका कारण चाहे जो हो पर हम उन्ही बातों को आल्हा का जौहर, अतर, रस या जो कहो समझते हैं। पहिले वे बेद ( मिसरे ) लिखे जाते हैं जो आल्हा में बहुधा नियत ठोर पर आया वन्त हैं । जो कोई प्रस्ताव इस घुन मे लिखा चाहें उन्हें चाहिए कि यह पद स्मरण रक्खें और अपने लेख में जहाँ देखें कि आशय ( मजमून ) नही मिलता और छंद पूरा ही करना है वहाँ रख लिया करें । इन पदों के बिना लिखे प्रस्ताव वाले की अविज्ञानता झलकती है-१. 'मैं तुम्हें हालु देब बतलाय' । २. 'ज्वानो सुनियो कान लगाय' । ३. "मंया सुनियो बात हमारि'। ४. 'सुनी हकीकत अब ( कोई चार मात्रा का नाम ) के'। ५. जहाँ से दूसरे विषय का आरंभ हो वहाँ, "हियां की बात तो हिया रहि अब आगे की सुनी हमाल ।' 'आगे' के ठौर पर कोई चार मात्रा का नाम भी रख सकते हो। ६. 'और बयरिया डोसन लागी और' हान लाग न्यौहार ।' पांचों और छठवां पद दोनों एक संग भी ला सकते हो । ७. वहाँ कोई बात संक्षेप में कहना