पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१९१

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कांग्रेस की जय ] १६९ स्वयं कार्याध्यक्ष लोग कहते थे कि हमने समझायो बड़ी हद्द हजार डेलीगेट आगे, उसके ठौर पर डेढ़ हजार मौजूद हैं। धन्य है लोग समझे थे कि मुसलमान उसमें कभी शरीक न होगे, सो एक से प्रतिष्ठित विद्वान्,धनिक मुमलमा अनुमान तीन सौ के विगजमान थे । बरंच बाज नगरों से हिदुमो की अपेक्षा मुसलमान ही अधिक आए थे। भला इन बातों को आंखों देख के वा विश्वासपात्रों से सुन के कौन न कह उठेगा कि 'कांग्रेस की जय' । सच तो यह है कि तीर्थगज मे ऐसा समागम शायद भारद्वाज बाबा के समय में हुवा हो, बीच में तो मुनने में नहीं आया। गों कभादि के मेलों में हजारों की भीड़ होती है 'पर कहाँ रेशम के लच्छे कहां झौवा भर झोथर'कहां कुपढ़ उजडु वैरागियों के जमघट, कहां श्री अयोध्यानाथ,श्री मदन मोहन, श्री रामपाल,उमेश सुरेन्द्र सरीखों का देव समाज ! आहा ! इस अवसर पर जिसने प्रयाग की शोभा न देखी उसने कुछ न किया लूथर माहब के हाते का नाम हमने प्रेमनगर रखा था क्योंकि लड़क, बूढ़े, हिंदू, मुसल- मान, जैन, क्रिस्तान, पश्चिमोत्तर देशी, बंगाली, गुजराती, सिंधी, मद्रासी, फारसी, इग. लिस्नानी, सब के सब प्रेम से भरे हुए दृष्टि आते थे। किसी प्रकार की कोई वस्तु किसी समय आप को चाहनी हो, किसी कार्यकर्ता से कह दीजिए बस मानों कल की लाई धरी है ! सत्र के एक से पट मन्दिर ( डेरे ). सबका एक विचार ( देशहित ), आमोद प्रमोद, संलाप-समागम के सिवा कुछ काम नहीं । व्याख्यानालय में पहुँचने के सिवा कोई चिन्ता नहीं, हजारो की वस्तु अवेले डेरे में डाल आइए, सुई तक खो जाने का डर नहीं, नहाने खाने सोने बैठने सैर करने आदि की किसी सामग्री का अभाव नहीं ! तनिक सिर भी दुम्खे, बंद, हकीम, डाक्टर सब उपस्थित हैं। पास ही कांग्रेस के बाजार में दुनिया भर की चीजें ले लीजिए ! पास ही तम्बू के तले दुनिया भर के समाचार ( अखबार) जान लीजिए ! पास ही डाक के बम्बे ( लेटरबाक्स ) मे लिव के डाल दीजिए, आप का सारा हाल आप के संबंधियों को पहुँच जायगा। उसके पास हो डेरे में चले जाइए, अपने घर नगर का वृत्त जान लीजिए। जहां व्याख्यान होते थे वुह स्थान ऐसा मुदृश्य और नाना बस्तु तथा एक रंग रूप की कुसियों से सुसज्जित था कि देखते ही बनता था। विशेषतः महात्मा ा म इत्यादि पुरुषरत्नों के आने पर तथा किसी के उत्तम व्याख्यान में कोई चीज की बात आ जाने पर करतल ध्वनि और आनन्दध्वनि के एवं नाना रंग रूमालनर्तन की शोभा देख के यही ज्ञात होता था कि हम सुरराज के मंदिर में देव समुह के मध्य वैठे हुए आनन्द समुद्र की लहरें ले रहे हैं । २६ से २९ ता. तक कांग्रेस का महाधिवेशन रहा। इस अवसर में प्रतिदिन प्रतिछिन आनन्द की वृद्धि रही। पर वुह आनन्द केवल भारतभक्तों के भाग्य में था। इतर लोग तो जो वहां जा भी पहुंचे तो कोरे के कोरे ही आए ! एक दिन एक मियां सादब किसी से टिकट मांग के हमारी प्रेम छावनी के भीतर पहुँच भी गए, पर इधर-उधर अपनी अंटीबाजी फैलाने से बाज न आए । अतः दूध की मक्खी को भांति दूर कर दिए गए ! २५ ता० को हमारे राजा शिवप्रसाद साहब भो प्रयाग जी में आए, और डेलीगेट होने का दावा किया, बरंच फीस भी जमा कर दी, एवं अपने पूर्व कृत्यों का अनुताप भी प्रकाशित किया। पर किसी को विश्वास न हुवा । विश्वास तो तब होता जब आप किसी देशहित के काम में शरीक हुए