पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१९८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१७६ [प्रतापनारायण-ग्रंपावली निकल गए तो कोई पाग उतारै छै, कोई धाप मार छ,कोई कीचड़ उछारै छै ! क्या करें बिचारे एक तो हिंदू, दूसरे कमजोर, तीसरे परदेशी, सभी तरह आफत है ! दूसरे नई रोशनी वाले देशभाइयों की बैलच्छ देख २ जले जाते हैं । यह चाहते हैं सब ज्येटिलमैन बन जाय, वहाँ आदमी बनना भी नापंसद है । मुंह रंगे हनुमानजी को बिरादरा में मिले जाते हैं ! तीसरे"...'चौथे दाढ़ी वाले हिंदू दिन भर रंग अबीर धोओ पर ललाई कही जाती है ! जो किसी ने गंधा पिरोजा लगा दिया तो और आफत है। लो, इतने हमने बता दिए, कुछ तुम भी सोचो ! अश्किल है कि चरने गई है। खं. ५, सं० ८ (१५, मार्च, ह० सं० ५) एक विचार गत मास में हमने 'समझने की बात' लिखी थी। उसमें अपने पाटक महाशयों को महीने भर तक कोई देशहित का काम सोचने की मुहलत दी थी पर किसी सज्जन ने कुछ न बताया कि क्या कर उठाना चाहिए, अतः हमी अपनी प्रतिज्ञानुसार लिखते हैं । पर याद रखो 'खान पियन अरु लिखन पढ़न सो काम न कछू चलो री। आलस छाडि एक मत ह क सांची वृद्धि करी री । समय नहिं नेक बची री। भारत में मत्ती है होरी' । भाई, इस होली में जहाँ चार डेरे मचवाओगे वहाँ समझ लो पांच नचाए । जहाँ दस बोतलें ढहती हैं वहां बारह सही। पर घोड़ा २ रुपया जमा करके एक अनाथालय कानपूर में भी कायम करो। देखो हर साल सैकड़ों लोग मोरिशस टापू (मिर्च के मुल्क ). को चल देते हैं । सैकड़ों हिंदू मुसलमानों के अनाथ लड़के या तो भूखों मर जाते हैं या पादरी साहब के यहां पल के तुम्हारे किसी काम के नहीं रहते । क्या तुम्हें इन विचारों पर कुछ दया नहीं आती ? क्या अनाथालय स्थापित होने से तुम्हारे देश का भला न होगा ? तुम्हें सच्चा पुन्य न होगा? एक समूह का समूह तुम्हारी दया से भूखों मरने और भ्रष्ट होने से बच के तुम्हारा सहायक रहेगा औ जन्म भर गुण मानेगा । फिर क्यों नहीं इसका आज ही उद्योग करते ? गोरक्षा में कई एक अड़चनें हैं तो भी परिश्रम के बल से कुछ चल ही निकली और उसके अगुआओं को कुछ लोक परलोक का भय, लना, विचार होगा तो चाहे हजार दिक्कतें पड़ें पर जैसे तैसे चलाए ही जायेंगे । पर इसमें तो कोई अड़चन नहीं है। हमारी सर्कार भी. अवश्य सहायता करेगी क्योंकि यह मनुष्यरक्षिणी सभा है । ईसाइयों के पाले हुए हर एक अनाथ बालक और बालिका को सर्कार दो रुपया महीना देती है। क्या तुम अच्छा प्रबंध दिखामोगे तो तुम्हारे पालितों को न देगी? अवश्य देगी। कई अनाथालयों को ( जो हिंदू मुसल- मानों के हैं ) देना स्वीकार किया है। विशेषतः इस नगर के लिए तो एक बड़ा भारी सुमीता यह है कि श्रीयुत पंडिन अमरमाय जी स्वर्गवासी (जिनके द्रव्य से यहां का