पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१९९

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संसार की अदभुत गति है ] गवर्नमेंट स्कूल चलता है ) का रुपया ऐसे ही ऐसे देशहित के कामों में उठाने को रखा हमा है। पर खेद है कि जिस धर्मबीर पुरुष ने अपनी गाढी कमाई हमारे हेत लगाई है उसका हमारे बहुत से भाई नाम भी नहीं जानते । गवर्नमेंट स्कूल या जिला स्कूल इस नाम से उनका नाम स्मरण कहाँ होता है । हाँ, यदि (अमर अनाथालय) स्थापित हो तो उनका यश भी कायम रहे,हमारो स्थानीय गवर्नमेट को घर से कुछ बहुत न देना पड़े, राजा प्रजा दोनों को पुन्य और देश का एक बड़ा भारी काम हो । कुछ दिन हुए कि कुछ लोगों ने इसकी चर्चा छेड़ी थी पर वुह चर्चा गोरक्षा तथा हिंदुओं के विरोधियों को ओर से थी, इससे कुछ न हुआ । हमे पूरी आशा है कि हमारे नगर के कोई प्रतिष्ठित पुरुष इसमें अग्रसर होंगे तो बहुत से सजन हिंदू और माननीय मुसलमान उनका साथ देने को उद्यत हो जायंगे और यह सदनुष्ठान ऐमी अच्छी रीति से चल डगरेगा कि दश ही पांच वर्ष में कानपुर कुछ का कुछ दिखाई देने लगेगा। देखें कौन माई का लाल विप्रबचन परमान कर दिग्वाता है । हे अनाथनाथ किसी को तो प्रेरणा करो! वं० ५, सं० ८ ( १५ मार्च ह० सं . ) संसार की अदभुत गति है यह एक प्रसिद्ध नियम है कि जो व्यक्ति जैसा होता है उसके काम भी वैसे हो होते हैं । कोई पुस्तक ले बैठिए, उसके आशय देख के बनाने वाले के स्वभाव का बहत कुछ परिचय हो जायगा । कोई वस्तु देग्विए तो यह जरूर विदित हो जायगा कि उसका निर्माण करने वाला चतुर है अथवा गाउदी। इस नियम के मूल पर इस दुनियां पर दृष्टि फेंकिए तो स्पष्ट हो जायगा कि इस की विचित्र गति है। आप कैसे ही बुद्धिमान क्यों न हों पर संसार को किसी बात का दृढ निश्चय नहीं कर सकते। जब कि इसका बनाने वाला परमेश्वर ही ऐसा है कि उसके रूप गुण स्वभाव सर्वथा अकथनीय,अतकनीय, अचिंतनीय हैं, यहां तक कि बड़े २ आचार्यों ने उसका एक लक्षण हो 'कर्तुमकर्तुमन्यथा कतु समर्थः' निश्चित किया है तो उस की मृष्टि ऐसी क्यो न हो ? आप यह सिद्धांत रक्खा चाहें कि दिन में प्रकाश होता है तो कभी २ ग्रहण पड़ने पर ऐसा अंधकार देख पड़ेगा कि छोटी मोटी रात्रि भी उसके आगे क्या है ? यह निश्चय कीजिए कि रात में अवश्य अंधेरा होता है तो कभी २ लावो तारे टूट के इ ना उजियाला कर देंगे कि दिन को क्या गिनती है। सब लोग कहते हैं, 'दो दिन खाने को न मिले तो अच्छे अच्छों को जीना कठिन हो जाय ।' हम देखते हैं महानिर्बल रोगी भी दो २ सप्ताह तक दाना नही घोंटते । सब जानते हैं कि घर तथा वाटिका के वृक्ष बिना सोचे मुरझा जाते हैं, १२