पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२०१

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ठगों के हपखंडे] प्रकाश करेंगे । कमी तो कोई सुने ही गा! और कुछ न होगा तो हमारे पाठकगण ऐसे लोगों के मायाजाल से बचे रहेंगे,यही कहां का थोड़ा है। यह हथकंडे बहुत प्रकार के होते हैं और सब लोग सब बातें नहीं जान सकते इस्से जहां तक हमें मालूम है हम लिखेंगे, जो और लोग जानते हों वे 'ब्राह्मण' या और किसी पत्र में सच्चाई के साथ प्रकाशित करते रहें तो देश का बड़ा उपकार हो । एक यह हथखंडा है कि जहां किसी ग्रामीण बैपारी को देखा कि माल बेंचे हुए रुपया लिये बाहर जा रहा है वही दो यारों ने उसका पीछा किया। एक ने तो मुलम्मे का कोई गहना किसी थली या पोटली में बांधा और बंपारी के आगे २ कुछ अंतर से चला तथा दूसरा उसके पीछे हो लिया। जब शहर से कुछ दूर पहुंचे और देखा कि इधर उधर कोई नहीं है तो आगे वाले ने अपने गहने वाला वस्त्र ऐसे मजे से राह में डाल दिया मानों गिरने की उसे खबर ही नहीं है, और चला गया। अब बंपारी साहब ने उसे पड़ा हुआ देखा और उठा लिया। खोलते हैं तो सोना पड़ा मिला है ! इस खुशी का क्या कहना! इतने में दूसरे ठग भाई ने उसके पास झट आके कहा, 'क्या है जी? वाह, यह तो सोने की है ! यह तो ५०) रुपये से कम नहीं है । सुनते हो, तुमने परा पाया है, उठाते बसत हमने देखा है । इससे इसमें आधे का साझी हमें भी करो नहीं तो यह शहर है, यहां तुम्हारी कुछ न चलंगी और हम तुम्हें फंसा देंगे। ऐसे २ साम, दाम, दंड भेद से उसके साझी बन गये अथवा आप ही ने उसे उठा लिया। चोर बंपारी से कहा, 'देखो वह आदमी ( जो जा रहा है ) इसे गिरा गया है। भाई उसको न बत- लाना, चलो हम तुम साझी सही ।' संक्षेप यह कि ऐसी पट्टी पढ़ा के उसके सुखमना बने ! अब थोड़ी दूर चल के; 'कहो कौन बाजार में बेंचने जायं! यह शहर है, यहां के लोग बड़े कांइयां होते हैं, उनके साथ मुड़ धुन कौन करेगा। गांव भी हम जल्दी जाया चाहते हैं, इससे अच्छा होगा या तो आधे दाम हमसे ले लेव, चीज दे देव । पर रुपया हमारे पास नहीं है, शहर चलो तो फलाने ( किसी अमीर का नाम ) के यहां दिला दें, या चलो हमारे गांव तक, वहां दे देंगे। नहीं तो तुम्ही यह चीज ले लेव । है तो ५०) रुपये की आधे दाम २५) रुपये होते हैं पर तुम्हें हम २० रुपए ही को दे देंगे । अरे हो, कौन खटपट में पड़े ।' भब पाठकगण सोच सकते हैं, शहर लौट जाने तथा दूसरे गांव जाने में एक तो तकलीफ दूसरे प्राप्ति... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ____एक हपखंडा यह है कि कोई लम्बे चौड़े नाम की सभा स्थापन कर ली जिसका उद्देश्य लिखने मात्र के लिए देशहित अथवा मनोरंजन हो, जिसमें नई अवस्था के अनजान देश- हितैषी एवं कौतुकी (शौकीन ) फंसते रहें और एक सवा दो नियम ऐसे नियत कर लिए जिनसे दूसरों को कुछ कहने सुनने का ठौर न रहे, यथा-यदि पांच वा सात सभासद भी बने रहेंगे तो सभा तोड़ी न जायगी और जो सभासद सभा से निकल जायंगे उनका फिर किसी वस्तु पर अधिकार न रहेगा तथा जो पदार्थ सभास्थान की शोभा के लिए अथवा सभासदों के आराम के लिए कोई वा कई मेम्बर लावेंगे उसका