पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२०७

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धरती माता की पूजा ] घरतो के पुष्ट रखने के उपाय भी सर्वसाधारण को विदित करते रहें। जड़ पदार्थ के पूजा के द्वेषी नक विचारें कि यदि इस पूजा से विमुख रहेंगे तो सारा धर्म और देशहितैषिता पोथियों ही में रह जायगी । मुख में बोलने की सामर्थ्य रहेगी नहीं, उस हालत में करते धरते कुछ न बनेगा। नहीं तो हमारे इस वाक्य पर विश्वास करो कि धरती है भगवती का रूप, इसके प्रयत्न रखने ही में सबका निर्वाह है। विश्वस्त बूढों से सुनने में आया है कि अभी ४० ही ५० वर्ष हुए, जिन खेतों में सौ २ मन अन्न उपजता था उनमें अब ५०-६० मन मुशकिल से होता है ! यह धरती माता की पूजा न होने ही का फल है । यदि हम अब भी न चेतेंगे तो आगे को और भी अनिष्ट की सम्भावना है। अतः अभी से धरती माता की पूजा का उद्योग कीजिए। दूसरों को उपदेश दीजिए, जी में बिचा- लिए कि इनके प्रसन्न रखने को कैसी पूजा चाहिए। फिर उस पूजा की विधि का सब में प्रचार कीजिए । यही परम कर्तव्य है। हमने जो कुछ सोचा, समझा और मुना है उसे आगामी अंक में प्रकाश करेंगे। हमारे दूसरे भाई भी सोचें तो क्या बात है । पर सोवने समझने के साथ यह भी विचार लेना चाहिए कि 'करनी सार है कथनी खुआर ।' खं० ५, सं० ९ ( १५ अप्रैल ह० सं० ५) धरतीमाता की पूजा जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के लेकचर सूने होगे उनको स्मरण होगा कि संस्कृत में वृक्ष को पादप कहते हैं, जिसका अर्थ है पांव से पीने वाला अर्थात् उनके पांव ( जड़ ) में जल डालो तो वे पी लेते हैं। जैसे हम मंह से जल दुग्धादि पीते हैं तो वह सारे शरीर को शीतल कर देता है वैसे ही पेड़ की जड़ में पानी डालो तो उसके डाल पात आदि को शीतल कर देता है, और पानी का जितना भाग पृथ्वी में होता है उसको वे स्वभावतः खीचा करते हैं। बड़े २ आम, पीपल, महआ आदि के पेड़ों को देखो वह बिना सोचे हरे रहते हैं। इसका कारण यही है कि वे धरती के स्वाभाविक जल को मूल द्वारा पीते रहते हैं इसी से जीवित रहते हैं और यह बात तो सबको विदित है कि पृथ्वी पर जितना जल है उसे सूर्यनारायण खीच लेते हैं। वही वर्षा में बरसा देते हैं । पर धरती में मिला हवा या धरता के नीचे का जल सूर्य नहीं खींचते, क्योंकि धरता उस जल की आड़ है। इससे धरती के नीचे का जल खींचने में सूरज को वृक्षों से सहा- या मिलती है। उन्होंने खीच के अपने पत्रपुष्पादिम भर लिया और पत्रादि पर सीधी सूर्य की किरणें पड़ो, बस धरती के नीचे का जल भी मेघमंडल में पहुंच गया ! विचार के देखिए तो नदी ताल आदि से भी बृक्षों का जल शीघ्र सूर्यनारायण तक पहुँचता है, क्योंकि वह उनके अधिक पास हैं। अब वाचकवृन्द बिचार लें कि वृक्षों से धरती को कितनो सुष्टि होती है। वृष्टि के लिए वृक्षों से कितनी अधिक सहायता होती है ! वृक्षों