पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२१८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१९६ [ प्रतापनारायण-अंपावली कोई नहीं है। वह अपनी प्रजा का हिताहित बाप जानता है । वेद, बाइबिल, कुराव बना के मर नहीं गया, न पागल हो गया है कि अब पुस्तक रचना न कर सके । यदि एक ही मत से सबका उबार समझता तो अन्य मतावलंबियों के अंध, ममुष्य और सारे चिह्न नाश हो कर देने में उसे किसका डर है ? इन सब बातों को देख सुन और सोच के भी मतवादीगण सबको अपनी राह चलाने के लिए हाव २ करते हैं, फिर हम क्यों न कहें कि वे परमात्मा से अधिक बुद्धिमान बन के उसकी चलती गाड़ी में रोड़ा मटकाते हैं। भला इससे बड़ के हरिनिंदा और नर्क का सामान क्या होगा? जैसे हमारी प्रतिमा न पूजने वालों को कभी एक फूल उठा देती हैं न निंदकों को एक थप्पड़ मार देती है, वैसे ही आपके निराकार भी न किसी उपासक को प्यार की बात कहते हैं न गाली देने वाले का सिर दुखाते हैं। फिर हम आपकी अथवा आप हमारी पूजा पद्धति पर आक्षेप करें तो सिवाय परस्पर विरोध उपजाने के और क्या करते हैं ? यदि वेद, बाइबिल, कुरानादि की एक प्रति अग्नि तथा जल में डाल दी जाय तो जलने अथवा गलने से कोई बच न जायगी। फिर एक मतवाला किस शेखो पर अपने को अच्छा और दूसरे को बुरा समझता है ? आपको जिस बात में विश्वास हो उसको मानिए, हम आपकी आत्मा के इजारदार नहीं हैं जो यह कहें कि यों नहीं यों कर ! यदि आप दृढ़ विश्वासी हैं तो हम अपनी बातो से डिगा नहीं सकते पर डिगाने की नीयत कर चुके, फिर कहिए विश्वास डिगाने को मानसाही कोन धर्म है ? जो आपका विश्वास कच्चा है तो हमारी बातों से आप फिसल जायंगे पर यह कदापि संभव नहीं है कि पूर्ण रूप से अपनी मुद्दत से मानी हुई रीति को छोड़ के एक साथ हमारी भांति हो जाइए। इस दशा में हम और भी घोर पाप करते हैं कि अपनी राह पर तो भलीभांति ला नहीं सकते पर भाप जिस राह में आनंद से चले जाते थे उस से फिर गए । भला धर्म मार्ग से फेर देने वाला या फेरने की इच्छा रखनेवाला नक के बिना कहां जायगा ? खं ५ सं० १०,११ (१९ मई, जून ह० सं० ५) एक इस अनेकवस्त्वात्मक विश्व का कर्ता, धरता, भर्ता, हर्ता परमेश्वर एक है ! उसके मिलने का मार्ग प्रेम हो केवल एक है। आदिदेव श्रीगणेश जी के दांत एक है । अंक- शास्त्र का मूल एक है ! सत्पुरुष की बात एक है ! उनका वचन यही है कि बात और बाप एक है। परमपूजनीय स्त्री के पति एक है। दिन का प्रकाशक दिवाकर एक है। रात में भी यावत तेजधारियों का राजा निशानाथ एक है। सबकी उन्नति का कारण दृढ़ोद्योग एक है। सबके नाश का मूल आलस्य एक है। जहां तक विचार करते जाइए यही सिद्ध होगा कि तीन काल और तीन लोक में जो कुछ है सब एक ही तंत में बंधा है ! कोई बात बिचारना हो, जब तक एक चित्त होके, एकांत में बैठ के, न