पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२०

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लत (चलती फिरती बोली में) अहा ! इन हूँ अखरानऊ मैं कैसो सवाद है के कछु बोलते चालत नाय बने ! एक बार हमारे प्यारे 'हिंदीप्रदीप' ने लिखी ही के 'ल' (लकार) सगरी वर्णमाला को अमृत है और व्याकरण वारे कहैं हैं के 'a' ('तकार') और 'लकार' दोऊ मुख के एकई स्थान सो कढ़े हैं-'लतुलसा दंत्या' । फेर या कहा संदेह रह्यो के या शब्द में द्वै २ अमृतन को मेल है (काऊ समय कार केऊ गुण लिखेंगे)। जब एक अमृत को सवाद मनुष्य न को दुर्लभ है तब द्वै अमृतन की तो बात ही कहाँ रही ? जा काऊ कों काऊ बात की लत पड़ जाय है बाय अपनी लत के आगे लोक परलोक, हानि लाभ, निदा बड़ाई आदि को नेकऊ बिचार नायं रहै है। लोग बड़े २ कष्ट उठावें हैं, सारे संसार सो आपको हंसा है, 4 लत को निभाव हैं। यासों सिद्ध है के लत में कछू तो मिठास है जाके लिए सब प्रकार के दुख सुख सों सहे गाय हैं। पारसी में ऐसे नाम बहुत से हैं जिनके पीछे लत की लगी है। 4 सबके वर्णन को या छोटे से पत्र में ठोर कहाँ ? तहूँ है चार को नमूनों दिखाय दिगे । दोलत (धन) कों तो कहनोई कहा है। नारायण की घर वारी (लक्ष्मी) ही ठरी! सारे जगत को काम याई सों चले है। भांति २ के पाप पुण्य याई के हेत करे जायें हैं। बड़े २ अधमन को याई के लए धरमावतार बनायो पर है । जाय देखी याई के कारन हाय २ कियो करै है । सौलत (दबदबा,प्रताप)-याऊ के निमित्त बड़े २ बीर अपनी जान जोखी में डारे हैं । अदालत की कथा ही भकय है। भाई २ की बात नाय सहै 4 एक २ चपरासी की लातऊ प्यारी लगे । सारी कमाई एक बात 4 म्वाहा! सब जाने हैं के जीत्यो सो हार्यो और हार्यो सो मर्यो 4 अदालत की बुरी लत बहुतेरन को । कछु निज को काम नायं होय है तो औरन को तमासाई देखवे को धूप में धाये हैं। इत उत मां ऊ 'कहा भयो कहा गयो' करत डोले हैं। फजीलत ( विद्वत्ता) को चाट 4 लोग सारे सुवन को होम करि के पढ़बेई मैं जीवन बिताय देतु हैं । मिल्लत (बदनामी) सगगे धन और सारी प्रतिष्ठा खोयबेई सों मिल है। कहाँ लौं कहिए, जा शन्द मैं लत को जोग होय वामै बड़ी ही बड़ी मात दी हैं। फेर 'लत' को वर्णन सही कसे कह्यो जाय । संसार में बड़ी २ बातन को मूल लतई है ! बड़ो नाम, बड़ो जम, बड़ो धन, बड़ो पद, बड़ो सुग्व, बड़ो दुख, बड़ो अजस, सब लत सोई प्राप्त होय है। हरमेश्वर को माना प्रकार की सृष्टि रचने की लत है । उनको कुछ प्ररोजन नायं 4 एक को बनाये हैं। एक को नसावें हैं याई लत के मारे ज्ञानीन में जगतपिता,प्रेमीन मे जगजीवन कहा हैं। पढ़े लिखेन में पूजे जाय हैं। गवारन की गारी खाय है। पानी बहुत बरसे तो मूरख कहिंगे, 'सारे के घर में पानी ही पानी है गयो है। जब नायं बरसे तब कहे हैं। 'मपूतो सूख गयो है।' धन्य रे नंद के छोरा! गारिक खाय है त नार्य छोड़े है।