पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२०० [ प्रतापनारायण प्रभावी और मन प्रसन्न हो जाते हैं, पर यह ऐसा गुणभरा हसिया है कि न उगलते बने न निगलते बने । उपाधि लग जाने पर उसका छुड़ाना कठिन है । यदि छूट जाय तो जीवन को दुखमय कर दे । संसार भर में थुइ २ हो और बनी रहे तो उस का नाम भी उपाधि है । हमारे कनोजिया भाइयों में आज विद्या, बल, धन इत्यादि कोई बात बाकी नही रही, केवल उपाधि ही मात्र शेष रही है। ककहरा भी नहीं जानते पर द्विवेदी, चतुर्वेदी, त्रिवेदी, त्रिपाठी आदि उपाधि बनी है। पर इन्ही के अनुरोध से बहुतेरे उन्नति के कामों से वंचित हो रहे हैं। न विलायत जा सके , एक दूसरे के साथ खा सके, न छोटा मोटा काम करके घर का दरिद्र मिटा सके। परमेश्वर न करे, यदि इस दीन दगा में कोई कन्या हो गई तो और भी कोढ़ में खाज हुई। घर में धन न ठहरा, बिना धन बेटी का ब्याह होना कठिन है। उतर के ब्याह दें तो नाक कटती है। न ब्याहैं तो इब्बत, धर्म, पुरुषों के नाम में बट्टा लगने का डर है। यह सब आफतें केवल उपाधि के कारण हैं। शास्त्रों में उपाध्याय पढ़ाने वाले को कहते हैं। यह पद बहुत बड़ा है पर उपाधि और उपाध्याय दोनों शब्द बहुत मिलते हैं, इससे हमारी जाति में उपाध्याय एक नीच पदवी (धाकर) मान ली गई हैं। इस नाम के मेल की बदौलत एक जाति को नोच बनना पड़ा। पर नीच बने भी छुटकारा नहीं है। वे धाकर हैं, उन्हें बेटी ब्याहने में और भी रूपया चाहिए। वरंच बेटा ब्याहने के लिए भी कुछ देना ही पड़ता है। यह दुहरा घाटा केवल उपाधि के नाम का फल है। हमारे बंगाली भाई भी कानकुबज ही कुल के हैं पर उन्होंने मुखोपाध्याय चटोपाध्याय इत्यादि नामों में देखा कि उपाधि लगी है, कौन जाने किसी दिन कोई उपाधि खड़ी कर दे इससे बुद्धि- मानी कर के नाम ही बदल डालें; मुकरजी चटरजी आदि बन गए । यह बात कुछ कनौजियों ही पर नहीं है, जिसके नाम में उपाधि लगी होगी उसी को सदा उपाधि लगी रहेगी। आज आप पंडित जी, बाबू जी, लाला जी, शेख जी आदि कहलाते हैं, बड़े आनंद में हैं। चार जजमानों को आशीर्वाद दे आया कीजिए या छोटा मोटा धंधा मा दस पान की नौकरी कर लिया कीजिए, परमात्मा खाने पहिनने को दे रहेगा। खाइए पहनिए. पांव पसारकर सोइए,न ऊधव के लेने न माधव के देने । पर यदि प्राज्ञा, विद्यासागर, बी०ए०, एम०ए०, आदि की उपाधि चाहनी हो तो किसी कालेज में नाम लिवाइए, परदेश जाइए, 'नोद नारि भोजन परिहरही' का नमूना बनिए, पांच सात बरस में उपाधि मिल जायगी। घर में चाहे खाने को न हो पर बाहर वाबू बन के निकलना पड़ेगा। चाहे भूखों मरिए पर धंधा कोई न कर सकिएगा। नौकरी भी जब आपके लायक मिलेगी तभी करना नहीं तो वात गए कुछ हाथ नहीं है । एका प्रकार की उपाधि सर्कार से मिलती है । यदि उसकी भूख हो तो हाकिमों की खुशामद तथा गोरा. गदेव की उपासना में कुछ दिन तक तन, मन, धन से लगे रहिए । कभी आप के नाम में भी सी० एस० आई• अथवा ए. बी. सी० से किसी अक्षर का पुछल्ला रूग जायगा अथवा राजा, रायबहादुर, खां बहादुर अथवा महामहोपाध्याय की उपाधि लग जायगी। पर यह न समझिए कि राजा कहलाने के साथ कही गद्दी भी मिल जायगी अथवा सच-