पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२३

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२०१ मुव के राजा भी आप को कुछ गर्न गूंथेंगे। हां, मन में समझे रहिए कि हम भी कुछ हैं, पर उपाधि की रक्षा के लिये कपड़ा लत्ता, चेहरा मुहरा, सवारी शिकारी, हजूर की खातिरदारी आदि में घर के धान पयार में मिलाने पड़ेंगे। अपने धर्म, कर्म, देश, जाति आदि से फिरंट रहना पड़ेगा, क्योंकि अब तो आप के पीछे उपाधि लग गई है ! इसी से कहते हैं, आधि का नाम बुरा। उपाधि पाना अच्छा है सही पर ऐसा ही अच्छा है जैसा बैकुण्ठ जाना, पर गधे पर चढ़े के ! खं० ५ सं० १२ ( १५ जुलाई ह० सं० ५) यह अक्षर भी कैसा मधुर और रसीला है कि 'लकार' का भाई ही समझना चाहिए। हमारे इस कहने पर कोई संदेह हो तो किसी व्याकरणी से पूछ देखिए, वुह पाणिनी जी के 'तुलसानां दन्ताः' के प्रमाण से बतला देगे कि 'तकार' को भी उत्पत्ति वही है जहां से 'लकार' निकली है। बरंच विचार के देखिए तो जान जाइएगा कि 'लकार' का रूप 'तकार' से पृथक नहीं है । 'तकार' ही को दुहरा कर देने से 'लकार' बन जाती है। अतः यह कहना भी झूठ नहीं है कि दोनों एक ही हैं । न मानिए तो स्वयं सोच लीजिए, जितने शब्दों में 'तकार' का योग होगा वे अवश्य प्यारे लगेंगे। छोटे २ बच्चों के कोमल मुख की तोतली बातें कसी भली लगती हैं। प्रेमपात्र के मुंह से 'तू' कहना कैसो सुहावना जान पड़ता है। मनुष्य का नो कहना ही क्या है, कुत्ते से भी 'तू तू' कहो तो स्नेह के मारे पूंछ हिलाने लगता है। गाने में ताना दिरना, तथा नाचने में 'ता तत थे इया' इत्यादि पद इसीलिए रखे गए हैं कि यह दोनों बातें मनोहारिणी होती हैं। कवियों के नव रसों में शृङ्गार और वीर रस प्रधान हैं। उनके उद्दीपनार्थ तंत्री ( वीणा) और धनुष के लिए ता की आवश्यकता होती है। पाकशास्त्र के तो छहों रसों में तवा और तई ( कढ़ाई ) ही सबसे मुख्य प्रयोजनीय वस्तु हैं। सब प्रकार के संबंधियों में पिता सबसे श्रेष्ठ प्रेम और प्रतिष्ठा का पात्र है। उसमें तो 'ता' हई है पर ताऊ उससे भी अधिक माननीय है, क्योंकि उसके आदि में 'ता' है। हमें अपना शरीर सबसे अधिक प्रिय है, उसी के मारे उसके नाम में भी इस अक्षर को मिला के 'तन' शब्द व्यवहार में लाते हैं। इस की रक्षा के लिए कपड़े पहनने पड़ते हैं। वे भी सूत से बनते हैं और ताना तान के बनाए जाते हैं । यावत देहधारियों को अपने घर से बड़ी प्रीति होती है। कही हो आवं अन्त को घर मा जाते हैं। उस घर का नाम भी 'मायतन' है। जीवन की तीन अवस्थाओं में भी तरणता ही बड़ी मजेदार होती है । उसमें भी तरुणी ही बड़ी सुखदा जान पड़ती है। उसकी भी शोभा की अधिकाई तेल