पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२६

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२०४
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२०४ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली हृदय में प्रेम, भक्ति, सहृदयता, अनुराग का महासागर उमड़ न उठता हो । आज हमारे यहां की सब सुख सामग्री नष्टप्राय हो रही है, सहस्रों वर्षों से हम दिन २ दोन होते चले आते हैं, पर तो भी राम से हमारा संबंध बना है। उनके पूर्वपुरुषों की राजशनी अयोध्या की दशा देख के हमें रोना आता है । जो एक दिन भारत के नगरों का शिरो- मणि था, हाय आज वुह फैजाबाद के जिले में एक गांव मात्र रह गया है। जहां एक से एक धीर, धार्मिक महाराज राज्य करते थे वहां आज बैरागी तथा थोड़े से दीनदशा- दलित हिंदू रह गए हैं। जो लोग प्रतिमा पूजन के द्वेषी हैं, परमेश्वर न करे, यदि कहीं उनकी चले तो फिर अयोध्या में रही क्या जायगा। पोड़े से मन्दिर ही तो हमारी प्यारी अयोध्या के सूखे पहाड़ हैं । पर हां, रामचन्द्र को विश्वव्यापिनी कोर्ति जिस समय हमारे कानों में पड़ती है उसी समय हमारा मरा हुआ मन जाग उठता है । हमारे इति- हास को हमारे दुर्दैव ने नाश कर दिया। यदि हम बड़ा भारी परिश्रम करके अपने पूर्वजों का सुयश एकत्र किया चाहें तो बड़ी मुद्दत में थोड़ी सी कार्यसिद्धि होगी। पर भगवान रामचन्द्र का अविकल चरित्र आज भी हमारे पास है जो औरों के चरित्र (जो बचे बचाए मिलते हैं वा कदाचित् दैवयोग से मिलें ) से सर्वोपरि, श्रेष्ठ, महारसपूर्ण, परम सुहावन है। जिसके द्वारा हम जान सकते हैं कि कभी हम भी कुछ थे अथव यदि कुछ हुआ चाहें तो हो सकते हैं। हममें कुछ भी लक्षण हो तो हमारे राम हमें अपना लेंगे । बानरों तक को उन्होंने अपना मित्र बना लिया हम मनुष्यों को क्या भृत्य भी न बनावेंगे यदि हम अपने को सुधारा चाहें तो अकेली रामायण में सब प्रकार के सूधार का मार्ग पा सकते हैं (इसका वर्णन फिर कभी)। हमारे कबिवर बालमीकु ने रामचरित्र में कोई उत्तम बात नहीं छोड़ो एवं भाषा भी इतनी सरल रक्खी है कि थोड़ी सी संस्कृत जानने वाला भी समझ सकता है। यदि इतना श्रम भी न हो सके तो भगवान तुलसी- दास की मनोहारिणी कविता थोड़ी सी हिंदी जानने वाले भी समझ सकते हैं, सुधा के समान काव्यानन्द पा सकते हैं और अपना तथा देश का सर्वप्रकार हितसाधन कर सकते हैं । केवल मन लगा के पढ़ना और प्रत्येक चौपाई का आशय तथा उसके अनुकूल चलने का विचार रखना होगा। रामायण में किसी सदुपदेश का अभाव नहीं है । यदि विचार- शक्ति से पूछिए कि रामायण की इतनी उत्तमता, उपकारकता, सरसता का कारण क्या है, तो यही उत्तर पाइएगा कि उसके कवि ही आश्चर्यशक्ति से पूर्ण हैं, फिर उनके काव्य का क्या कहना । पर यह भी बात अनुभवशाली पुरुषों की बताई हुई है, फिर इस सिद्ध एवं विदग्वालाप कवीश्वरों का मन कभी साधारण विषयों पर नहीं दौड़ता, वुह संसार भर का चुना हुआ परमोत्तम आशय देखते हैं तभी कविता करने की ओर दत्त चित्त होते हैं। इससे स्वयं सिद्ध कि रामचरित्र वास्तव में ऐसा ही है कि उस पर बड़े २ कवीश्वरों ने श्रद्धा की है और अपनी पूरी कविताशक्ति उस पर निछावर करके हमारे लिए ऐसे २ अमूल्य रत्ल छोड़ गए हैं कि हम इन गिरे दिनों में भी उनके कारण सच्चा अभिमान कर सकते हैं, इस हीन दशा में भी काव्यानन्द के द्वारा परमानन्द का स्वाद पा सकते हैं, और यदि चाहें तो संसार परमार्थ दोनों बना सकते हैं। खेद है यदि हम