पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२०६ [प्रतापनारायण-चावली इतनी झूठ? यदि कहिए कि उसका आशय बमन्त है तो भी "अनन्ताशया वेदाः" होना चाहिए । ईश्वर के बचन में भ्रांति ? विशेषतः ऐसे बचन में जो सब के उपदेशार्थ प्रकाश किया गया हो ? बाइबिल तथा कुरआनके दोष दिखाना हमें अभीष्ट नहीं है पर इतनी शंका हमारे जी से नहीं जाती कि ईश्वरप्रणीत ग्रन्यों में इतना गड़बड़ क्यों हुआ कि मनुष्य उनमें दोष लगा सकें ? इसके सिवा इन पोथियों में जितनी विधि और निषेध वणित है, मानव मंडली अधिकतः उनके विस्त ही आचरण करती है, यह क्यो ? एक छोटे से संसारो राजपुरुष की मौखिक आज्ञा को तो कोई भंग ही नहीं कर सकता, ईश्वर की लिखी हुई आज्ञा क्या उससे भी गई बीती है कि मानो तो वाह २ न मानी तो वाह वाह ! फिर हम क्यों कर मान लें कि यही पांच छः किताबें, जिनका अर्थ कोई कुछ बतलाता है, कोई कुछ, यही थोड़े से कागज जो अंजुली भर पानी में गल के हलुवा और एक दियासलाई में जल के राख हो सकते हैं, ईश्वर का बचन है। हां, हम अपने लड़के को गोद में लिए बैठे हों और कोई प्रिय मित्र पूछे 'क्या यह आपका चिरंजीव है ?', तो हम उत्तर देते हैं 'जी हां, आपही का है'। यह कहना सभ्यता की रीति से झूठ नहीं है। ऐसे ही अपने मान्य पुरुषों ( जिन्हें हम ईश्वर का अभिन्न मित्र, इकलौता बेटा अथवा प्यारा स्नेही समझते हैं और वास्तव में उनके बहुत से काम इन पदवियों के योग्य थे) उनके बनाए ग्रन्थ को ईश्वर का बनाया कहें तो कोई दोष नहीं है। जैसे हम कहा करते हैं कि 'इस विपत्ति में परमेश्वर ही ने बचाया अथवा यह योग्यता परमात्मा ही ने दो, नहीं तो हम में क्या सामर्थ्य थी', ऐसे ही यदि ईसा, मूसा, मुह- म्मदादि ने कहा कि 'अमुक ग्रन्थ ईश्वर ही ने बनाया नहीं तो हमारा क्या माध्य था' तो कोई अपराध नहीं है बरंच उनके महा निराभिमान की पराकाष्ठा है। पर बास्तव में ऐसी पोथियों को ईश्वरकृत मानना, जिनमें कहीं लिखा है, ईश्वर ने छः दिन में जगत बनाया, कही कहा है, मरने के पीछे कयामत के दिन तक सब जीवों के पाप पुन्य का मुकदिमा ईश्वर की अदालत में भी दौरा सुपुर्द ही रहेगा, कहीं वर्णन किया है, एक स्त्री ग्यारह पति करले तो भी पाप नहीं है, अंधेर है। यदि बुद्धि कोई वस्तु है तो दूषित पुस्तकों को अथवा ऐसी पुस्तकों को, जिनके अर्थ में प्रांति संभव है या झगड़े के लिए स्थान है, ईश्वरलिखित कभी न मानेंगे। हां,जिस पोथी में कहानियां अथवा गीत कवित्त आदि होते हैं वह गीत कवित्त आदि की पुस्तक कहाती है वैसे ही जिस पुस्तक में ईश्वर का वर्णन हो उसे इंश्वर की पुस्तक अथवा ईश्वर सम्बन्धी बचन कह लेना दोषास्पद नहीं है। पर वास्तव में बुद्धिसंगत ईश्वर का बचन क्या है, इसका समझना सहज नहीं है। यों तो संसार ईश्वर का है अतः तदंतः पाती बचन मात्र ईश्वर ही के बचन हैं। कुत्ते की भी भी अथवा गधे की सीपों से लेके हमारी तुम्हारी पशप और बड़े २ पोषाधारियों की बवित्रता सब ईश्वर ही के बचन हैं, पर इंश्वर अनादि, अनन्त और अकथनीय स्वभावविशिष्ट है अतः इंश्वर के बचन या उसकी आशा तथा उसकी बनाई पोपी कैसी है, क्या है, के हैं, यह हम लोग नहीं बतला सकते। हो, थोड़ी सी उसकी बातें बहुत से विद्वानों द्वारा विदित हुई हैं, वह सुन रखिये। जिन बातों की