पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२२० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली चिता उपजती रहती है वहीं इसके जी में भी अनेकानेक तरंगे उठा करती है । विशेष कर के जब से सैकड़ों सहृदयों के द्वारा यह निश्चय हो गया है कि राजा प्रजा दोनों का सच्चा हित कांग्रेस के उद्योगों को सफलता ही पर निर्भर है तब से इसी का ध्यान अधिकतर आया करता है । तिस पर भी जब यह समझा जाता है कि अब आगामी समारोह के थोड़े ही दिन रह गये हैं तब दूसरी बातों का अधिक विचार होना जाति स्वभाव के विरुद्ध है। अतः कभी यह उमंग उठती है कि अब अवश्य भारत के दिन फिरेंगे क्योंकि चारों ओर चतुर लोगों में देशोद्धार ही की चर्चा रहा करती है । कभी यह सूझती है कि 'बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं', फिर हम तो मनुष्य हैं पृथ्वीराज ( बरंच कौरवों पांडवों के युद्ध ) के समय से दिन २ दुर्गति ही भोग रहे हैं । अतः यदि 'सुखस्यानन्तरन्दुःखन्दुःखस्यानन्तरं सुखम्' सत्य है तो अब परमात्मा अवश्यमेव हमारी सुध लेगा। कभी यह सनक चढ़ती है कि अभी थोड़े दिन हुए, जो लोग ( आस्ट्रेलिया वाले ) सभ्यता में पशु पक्षियों से अधिक न थे वे आज विद्यादि सद्गुणों में उन्नति कर रहे हैं, हम तो इतने गिर भी नहीं गए, हमारा उठना क्या असंभव है ? कभी यह तरंग आती है कि मरणानन्तर कल्पित सुखों की आशा पर हमारे बहुत से भाई सहस्रों को सम्पत्ति और समस्त वर्तमान सुखों का मोह छोड़ देते हैं तो क्या हमें अपने देश के भावी सुखों की दृढ़ आशा पर अपने तन मन धन का लोभ करना चाहिये ? कदापि नहीं। कभी यह विश्वास आता है कि हमारे प्रेमशास्त्र के अनुसार अनेक प्रकार के लोगों का कुछ एकमत हो जाना ही अभ्युदय का मूल है । और कांग्रेस में यह बात प्रत्यक्ष देख पड़ती है कि सैकड़ों कोस से सैकड़ों भांति के लोग आते हैं और सारी भिन्नता छोड़ के परम्पर प्रार्तृत्व दरसावे हैं एवं एक स्वर से देश दुर्दशा निवारण एवं रामा. प्रजा में सरल स्नेह संचारण के गीत गाते हैं। इसका फल क्या कुछ न होगा? अवश्य होगा। कभी ध्यान आता है कि महात्मा ग़म जो न हमारे देश के हैं न जाति के, पर हमारे भले के लिये तन मन धन अपंन कर दिया कर रहे हैं, करेंगे, क्या इनके उपकारों को हम कभी भूल जायंगे ? क्या इनके साहस में हमारे देशबन्धु योग न देंगे ? जब कि कुत्ते भी अपने हितैषी के लिये प्राण दे देते हैं तो क्या भारत संतान उनसे भी गये बीते हैं कि केवल धन का मुंह देख के ऐसे निष्कपट शुभाकांक्षी को कुंठित कर देंगे ? नहीं ा म बाबा, हम लोग कभी तुम्हारै उद्देश्य से जी न चुरा- चंगे। हम भारतमाता के पुत्र हैं जो अपने उपकारियों की प्रतिमा पूजन में परम धर्म समझते हैं । सारा संसार हंसा करे, कुछ पर्वा नहीं, पर जिसे हम समझ लेंगे कि हमारा है उससे विमुख होंगे तो मुख दिखाने योग्य न रहेंगे । अतः कभी किसी दशा में तुम्हारा जो छोटा न होने देंगे। हम जानते हैं कि तुम्हारी प्यारी तथा हमारी हितसाधनहारी भारत की जातीय महासभा एवं इंगलिश एजेंसी को चालिस सहा रुपया वार्षिक व्यय निश्चय चाहिये । इसके बिना यह दोनों महत्कार्य नहीं चल सकते । पर परमेश्वर करे जो कही इनमें कुछ भी बाधा हुई फिर तो पचास वर्ष हिन्दोस्तान का संभलना कठिन है। यह भी हम मानते हैं कि हमारे पूजनीय वुढ़ऊ ( हयूम महोदय ) ने वित बाहर