पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४९

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तिल ] २२७ जेह के बिना पितर पानी नाही पावति, देउतन का होमु नाही होत, तेहि के बड़ाई मनई कैसे कर सकत है ? ई द्यखई का छ्वाट होत है 4 गुन बड़े २ भरे हैं। भ्यनहीं के पहर उठि के पैसा ध्याला भरि चचाय लीन करै कीती नेनू ( मक्खन ) के साथ खाय लीन करे तो कोनों गेगु दोखु नेरे न आवै। तेलु एहिका अस दूसर होत नाहीना । सब फुलेल एही में बनत हैं, जिन के बिन बड़े २ रसिया और बड़ी २ सुंदरिन का निकनपटु नाही होत । फुरी पूछो तो तेल फुलेल भे अक्याल सिंगारुइ नाही होत, आंग्विन के जोतिउ बाढ़ति है । माथे मां जुड़वनिया होति है और द्यांह भरि निरदोखिल ह जाति है । हम जानित रहै पारसो पढ़े या तेले का रोगनु औ रोसनाई झठुइ मूल कहत हैं 4 जब हमरे हियों के बैदउ कहत हैं कि तिल खाय मां औ तेल लग वै मां बड़े २ गुन हैं तो कैसे न कहन कि यो बड़ा भारी पदारथु आय । तेलु बहुती बस्तुन मां निकरत है 4 जो पंडित महराज ते पूछो तो यहै बतैहैं कि तिलाजायते तनं । फिर हमरे कहै मां का झूठ है कि मुक्ति चिकन ई ये ही में होति है। न मानो कुछ दिन खाय लगाय के देखि लेव । काया दिपों २ होय लागै तब मान्यो। नाहीं जानित उइ कैस मनई हैं जो कहा करत हैं कि 'तिल गुर भोजन तुरुक मिताई,पहिल मोठ पाछे करुआई ।' ऐमेहैं कोनो रोगु हो तो बात दूसरि है, नाही तिलवा के ऊपर पानी न पियौ तौ कबौं औगुन करिब न करी । औ आगे के दिनन मां जो पापी बिस्वासु बढाय के घटिहई करत रहैं उनकी बात जाय देव तो अकबर ऐसेन के तो मिताई का पुजाण होति रहै । आजो काल्हि ऐसे कौनी बेहना ओहना, जोलहा सोलहा चहै तुरकई करत होय 4 ऊंत्री जाति के औ बड़े बंस के मुसलमान भलेमंसे होत हैं । द्यायो न दुई बर्स ते बड़केवा सभा ( कांग्रेस ) मों कस तन मन वे द्यास की भलाई मों लाग है । तेह ते हमरी जान मां कोहू का द्वाखवु नीक नाही होत । नीक और नागा सब जातिन मा होत हैं । हिदुनीं मां सैकरन ऐस परे हैं जिनका भोरहों नाउं लेव तो दिन भरि अन्न ते म्यांट न होय । ऐसे सब वस्तुनों का ल्याख्या है। रीति २ ते खाव तौ संखिया लगे गुन करति है तिलन का तो कहई का है ? हमरे कहैं का परोजनु यो है कि ऊपर वाली कहावति सब ठांय न लगावा चही । मुसल्मान हमार भाई आयं । उनतै बिगारु करत हैं तो नीक नाही करत । औ तिल बड़ी भारी निधि आयं । उनहुन के निद्या करबु अक्किल का काम न आयं । बरह्मा बाबा जा कुछु बनावा हैनि अनइस नाहीं बनायनि, हमहों पंच अपनी बैलच्छि ते चहै जेहका अनइस के लेन । नाही तो तिल के महिमा एतो बड़ी है कि बरम्हें उनका हमरी तुम्हरी आंखिन मां धरा है । मुई औ बदरे पर जौनु कुछु देखि परत है आंखिन वाले तिल के सहारे देखि परत है। जिनकी आँखी क्यार तिलु तनको बिगरि जात है उनका चारिउ खूट अंधियार लागत हैं, कचौ कुछु सुझिही नाही परत । राम कर सब के आंखी दीदा बने रहैं, इनहिन में सब कुछ है और सुनौ जिन का दई अपने हाथ गढ़ा है, जिनका रूपु देखिकै मेहरियन मंसवन के भूख पियास हरति है उनके गोरे २ गाले पर बोधां करिया २ बुंदका अस होत है, वही तिलुई कहावत है, जेडिके