पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२५०

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२२८
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२२८ [प्रतापनारायण-पंपावली कार रसिया जिउ परान काढत है औ बड़े २ कबेसुर याक २ जीम लाख २ बड़ाई करते हैं। कहो तो याक सैर सुनायू देन पै तुम कहै लगिही कि अलबी तलबी बालत है येहते अरथुइ कहे देइत है-'तुम्हारे गाले वाला करिया तिलु हमरी आंखो क्यार तिलु आय काहेते कि एह के बिना दुपहरी हमरे लेखे अंधेरिया राति रहति है। हमका नेहची है कि ऐसी २ बातन कैतो मन दोरहो तो कवी तिलन का निदरही न वरुक यो समझे रहिहो कि मनुक्ति का जलम बार २ नाही मिलत एहते जोनी बातन मां अपने गांव घास के मनइन का भला होत होय उन मां तिलो भरि कसर मसर न कोन चही और कौनी नीक कामु कर मां यो न विचारा चही कि 'तिल ज्वराऊ तो पापु गुरु ध्वराउ तो पापु' । जैसे बने तैसे अपने लरिका बालेन का, अपने भैयाचारेन का, कुछु सुभीता के जावा चही । यह मंसई का घरमु आय और जैतरै बड़े २ ह गेहैं सबहिन ऐस कीन है । एहते हमारि बात मानी औ या बात गांठी बांधौ कि हमरी जाति पाति मां जेते लरिका पुरिखा हैं हम सबके करिया तिल खाए हैं । जनम भर इनकै सेवा न करिवे तो जमराज के हियां तिल २ मांसु न्याचा जाई । एहते जहाँ लगे अपने बूते होय अपनेन का भला कीन चही । यो न स्वाचा चही कि अकेले हम कहां लेग का २ करिवे, नाही तिल २ जोरे पर्वतु होत है । काल्हि का तुम्हरो हिसकन और चार जने ट्यांव ढंग लगि जैहैं तो सव दुख दलिद्र टर जाई । तिला लगाय के हमरे बताये कामन का करत रहिहो तो याक दिन देउतन की नाही पूजे जही नाही तो पीना अस मुंह बनाए बैठ रहिहो । कबौं इन तिलन मों तेल न निकरी । कही कुछ तिलो भरि मनमां बैठ है ? जो बैठ होय तो आजु ते यो समुझि राखौ कि हम सकटन क्यार तिलबोकुन आहिन कि चहै एकु लरिको दूब के बौडा में मूड़ी काटि ले, हमते मिमिआती न बनी । नाही हम घरम के तिलगां आहिन । अपने द्यास की नितिनि और अपनी सरकार की नितिन काम परे पर पांव पछाडू हम धरिबे ना चाहे तन धंजी २ उड़ि जाय'-येही मां तिलो की- नाथ हमार मरतो जियत भला करिहैं। ग्वं० ६, सं० ६ (१५ जनवरी ह० सं० ६) काल संसार में जो कुछ देना सुना जाता है सब इन्हीं दो अक्षरों के अंतर्गत है । इसका पूरा भेद पाना मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर है । क्योकि यदि-नृपति सेन संपति सचिव, सुत कलत्र परिवार । करत सबन को स्वप्न सम, नमो काल करतार ॥' के अनुसार उसे ईश्वर का रूपांतर न मानिये तो भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनादि और अनंत १. रोजे रोशन भी है मुझको शवेतार इस के बगैर । आँख का तिल है तेरा खाले सियह बर आरिज ॥