पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२५२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२६० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली लड़ाई ठान के वे उलझेड़े में पड़े ! उपर्युक्त दोनों प्रकार के उदाहरण प्रत्येक देश के इतिहास में अनेक मिल सक्ते हैं, पर उन्हें न लिख के भी यदि हम अपने पाठकों से पूछे कि इन दोनों में आपको कौन मार्ग रुचता है तो हम निश्चय यही उत्तर पावगे कि काल की चाल के अनुकूल चलनेवाला! क्योकि सदा सब देशों में बड़े २ लोग थोड़े होते हैं जो प्रत्येक कष्ट और हानि का सामना करने को बद्ध परिवर हैं, पर ऐसे लोगों को संख्या अधिक होती है जो साधारण रीति से संसार के नित्यनियमों का पालनमात्र अपनी सामर्थ्य का निचोड़ समझते हों और ऐसे लोगों के लिये यही ढर्रा सुभीते का है कि जिधर अनेक सहकालियों की मनोवृत्ति झुक रही हो, उधर ही ढुलके रहना। इसमें हानि अथवा निंदा का भय नहीं है, वरञ्च यदि कम परिश्रम, सहनशीलता आदि मे थोड़ी सी विशेषता निभ जाय तो अपना तथा अपने लोगों का बड़ा भारी हित हो सक्ता है, महाबली काल की सहायता मिलती रहती है। इससे जिन्हें हमारे उपदेश कुछ रुचिकारक हों, उनसे हम अनुरोध करते हैं कि बड़े २ विचार छोड़ के यदि वे सचमुच देश जाति का भला चाहते हों, तो तन मन धन ( कुछ न हो सके तो ) वचन से थोड़ा बहुत कोई ऐसा काम नित्य करते हैं जो वर्तमान समय के बहुत से लोगो ने अच्छा समझ रक्खा हो । बस इसी में बहुत कुछ हो रहेगा। जिस काल में यः सामर्थ्य है कि सारे जगत के सर्वोत्कृष्ट प्रकाशक सूर्य को आधी रात के समय ऐसा अदृष्य करते हैं कि दूरबीन लगाने से भी न देख पड़े, जिसमें यह शक्ति है कि जड़ चेतन मात्र को प्रफुल्लित करनेवाले, सबके जीवन के एक मात्र आधार प्रातः पवन को जेठ वैसाख की दुपहरी में ऐसा बना देते हैं कि लोग उससे जी चुराते हैं, वह यदि तुम्हारा साथी होगा अथवा यों कहो कि तुम यदि उसके अनुगामी होगे, तो क्या कुछ न हो रहेगा? इमकी वह महिमा है कि जो बातें कभी किसी के ध्यान में नहीं आती वरंच सोचने से असंभव जंचती हैं उनके लिए ऐसे २ योग लगा देता है कि एक दिन वैसा ही हो रहता है। ऐसे महासामर्थी से यह तो बिचारना ही नहीं चाहिए कि अमुक बात न हो सकेगी। जो बित्ताभर के बालक को बली, धनी, विद्वान् मनुष्य और बड़े से बड़े मनुष्यरत्न को राख का ढेर बना देता है, वह क्या नहीं कर सत्ता ? उगके तनिक से 5 सचालन में जो न हो जाय सो थोड़ा है। आपके शरीर में चाहे सहस्र हाथियों का बल हो, पर काल भगवान एक दिन की अस्वस्थता में लाठी के सहारे उटने बैटने योग्य बना सक्ते हैं । किसी के घर में लाखों की संपत्ति भरी हो, पर एक रात्रि में चोरों के द्वारा यह भिक्षा मांगने के योग्य कर सकते हैं। फिर इनके सामने किसका घमंड रहे सत्ता है ? जो लोग समझते हैं कि हमारा देश अमुक २ विषयों में दुःखी है उन्हें विश्वास रखना चाहिए कि कालचक्र ( समय का पहिया ) प्रतिक्षण घूमता ही रहता है और उसका नियम है कि जो आरा ऊपर है वह अवश्य नीचे आवेगा तथा जो नीचे है वह अवश्य ऊपर जायेगा। अतः रात्रि में यह सोचना कि दिन होहीगा नहीं, बज्र मूर्खता है। माप कुछ न कीजिये तो भी सब कुछ हो रहेगा, पर यदि हाय समेटे बैठा रहना न