पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२५९

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पौराणिक गूढार्थ ] २३७ बने चारि दिशा ते एक चित्त ह के मेरु को हलाय के उखारे तो उखरि जाय।' हमारे मित्रों में बहुत लोग कहा करते हैं, 'भाई हमारे अकेले दो हाथों के किये क्या हो सत्ता है ?' इसी मूल पर पंच परमेश्वर वाली कहावत प्रसिद्ध हुई है । अर्थात् पाँच जने जिस काम को करते हैं उसे मानों परमेश्वर स्वयं कर रहा है। फिर यदि हम तपा हमारे पुराण कर्ताओं ने भी कहा कि परमेश्वर (विष्णु, शिव, दुर्गादि ) चतुर्भुजी, अष्टभुजी अथवा दशभुजी है तो क्या झूठ है ? कौन नहीं मानता कि परमात्मा महान् शक्तिमान है ? २. इसी भांति पुराणों में सिंह, वृषभ, मूषकादि देवताओं के बाहन लिखे हैं। इस पर भी नये मतवाले ठट्टा किया करते हैं पर यह नहीं विवारते कि संस्कृत में वाहन उसे कहते हैं जिसके द्वारा कोई चले वा जो किसी के द्वारा चलाया जाय । जैसे वैद्यक शास्त्र के परमावार्य धन्वंतरि का नाम जलीकाबाहन है। इससे यह तात्पर्य नहीं है कि वे जोंक पर चढते हैं, किंतु यह अभिप्राय है कि वे जोंक के चलाने वाले अर्थात् रक्त विकार के हरणार्थ जोंक लगाने की रीति चलाने वाले हैं। इसी प्रकार सिंहवाहिनी का अर्थ है कि जो बीर पुरुष हैं, जिन्हें सब भाषाओं मे सिंह का उपनाम दिया जाता है उनका काम, नाम एवं गश ईश्वर की बीरता शक्ति ही चलती है। हमारे पाठक विचार तो करें कि ऐमी बातों को झूठ, गप्प, हास्यास्पद कहना विद्या और बुद्धि से वैर ही करना है कि और कुछ ? वाहन अनेक हैं पर यदि सब का वर्णन किया जाय तो लेख बहुत बढ़ जायगा इससे मुख्य २ स्वरूपों के बाहनों का मुख्यार्थ लिखते हैं । ३. विष्णु भगवान के बाहन गरुड हैं जिनका वेग पवन से सैकड़ों गुणा अधिक है। दमका अर्थ यह है कि जिनका काम काज विश्वव्यापी परमेश्वर चलाता है या यों कहो, जो लोग वेवल उसी के आसरे सब काम करते हैं अथवा सब कामों में उसकी प्रेममयी भूति हृदय मे धारण पि ये रहते हैं वे पवन की गति से भी अधिक शीघ्र कृतकार्य होते हैं अथवा प्रेमदेव अपने लोगों के सहायार्थ पवन से भी शीघ्र मा सक्त हैं । गरड़ जी सांपों के भक्षक हैं, अर्थात् ईश्वर के निकटवर्ती लोग ऐसे कपटो जीवों के जानी दुश्मन हैं जो ऊपर से कोमल २, चिकना २ स्वरूप रखते हैं पर भीतर विष भरे रहते हैं । ४. गणेश जी अर्थात् समस्त सृष्टि समूह के स्वामी, विद्या वारिधि, बुद्धि विधाता, जगत्राता मूषक बाहन हैं । अर्थात् ऐसे जीवों ( मनुष्यों ) के हृदय में आरूढ़ होते हैं अथवा ऐसों का कार्य संचालन करते हैं जो ( लोग ) देखने मे छोटे अर्थात् साधारण संसारियों से भी बाह्याडंबर मे न्यून है पर वास्तव में अभी ऐसे हैं कि जब साग 'संसार सोवे तब भी अपना कर्तव्य साधन न छोड़ें । बुद्धिमान और खोजी ऐसे है कि सात पर्दे की वस्तु को ढूंढ़ ही लावै और उसके छोटे से छोटे अंश को भी प्रथक् कर दिखा तथा चतुर इतने हैं कि शत्रु लाख मेवमेव करने वाला हो तो भी उससे सावधान ही रहें, इत्यादि । चूहे के अनेक गुण हैं जिन्हें विचार लेने से भगवान उंदुरु बाहन की अनन्त महिमा का बहुत कुछ भेद खुल सक्ता है ।