पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पौराणिक गूढार्थ ] २३९ पानी के काम न आये, पृथ्वी पर पड़े हुए भी आकाश के चंद्रमा तक पर हाथ लपकाने रहे, वही लक्ष्मी को पैदा कर सकते हैं। ८. भगवान मनोगव का बाहन तथा ध्वजाचिन्ह (जिस देवता का जो बाहन होता है बहुधा वही ध्वजा मे भी रहता है ) मत्स्य है। इसका तात्पर्य वैक मत से यह है कि मछली खाने तथा काडलिवर आइल ( मछली का तेल ) पीने से यह बहुत वृद्धि को प्राप्त होते हैं । ज्योतिष के मत से मीन राशि के सूर्यों में अधिक उन्नत होत हैं। कर्मकांड की रीति से मछलियों को चारा देने से अनेक कामना सिद्ध होती है तथा हमारे सिद्धांत में-'मीन काटि जल धोइए खाए अधिक पियास । तुलसी प्रीति सराहिये मुयेह मीत की आस ।' - इस महावाक्य का अनुसरण करने से कोटि काम सुंदर भगवान प्रेमदेव बड़े ही प्रसन्न होते हैं। इनके कुसुमायुध नाम का अभिप्राय यह है कि नाना जाति के पुष्पों का अवलोकन और घ्राण करने से मम्मथ का उद्दीपन तथा विज्ञान दृष्टि से देखने से अनेक सुख संतोषजनक विचार ऐसे उत्पन्न होते हैं कि उनका अनुभव करो तो जान पड़ता है कि किसी ने बाण मार दिया। संसारियों को फूल बूटा तथा मछलियों के चित्र काढ़ने से कीति एवं धन का राभ होता है जिससे सारी कामना सफल होती है और सदा निशाने पर तीर लगता रहता है । अर्थात् निर्वाह योग्य वस्तुओं का मनोरथ निष्फल नही होने पाता । रसिको के लिये कुसुम कोमल अवयव वालो का दर्शन स्पर्शन तथा मौन चंचल नेत्रो का अवलोव न बाण के समान हृदयस्पर्शी होता है । ऐसे २ अगणित भाव अनुभव करके इस देवता के साथ मत्स्य और पुष्प का संबंध रक्वा गया है। ___९. युद्ध के देवता स्वामिकात्तिकेय जी का बाहन मयूर, जिसे सभी जानते हैं कि उड़ता भी है और नाचता भी है। जिन्हों ने हमारे यहां का आल्हा सुना होगा वे इस पद से इनके बाहन का तत्व खूब समझ सकेंगे कि-'कबहुँ बेंदुला भुइं मt नाच कबहूँ जोजन भरि उडि जायं', अथवा-'घोड़ा बेंदुला नाचल आवै जैसे बन मा नचं पुछारि ।' जब कि युद्धप्रिय मनुष्यों के बाहन की उपमा पुछारि से दी जाती है तो युद्धदेव का बाहन पछारि के अतिरिक्त और क्या कहा जाय । इसके सिवा उसका सर्वभक्षण एवं नखचंचु दोनों के द्वारा प्रहार भी रणक्षेत्र के लिये बड़ा उपयोगी है तथा च उनके छ: मुख भी यही सूचना देते हैं कि शत्रु सेना में प्रवेश करने वाले को पूर्व पश्चिम, उत्तर दक्षिण, नीचे ( सुरंग तथा कपट दीनता संपन्न ) और ऊपर ( घमंडी अथवा व्योम- यानादि पर आरूढ़ ) के शत्रुओं पर दृष्टि रखनी उचित है। इनके जन्म काल में छ: युवती पुत्रषणा से इनके पास आई और सबों ने दुग्धपान कराने की इच्छा प्रकट की तो इन्हों ने एक साथ छहों का स्तन पान करके सबकी रुचि रक्खी। यह आख्यायिका भी सच्चे बीरों का स्वाभाविक गुण विदित करती है कि जितनी स्त्री दृष्टि पड़ें सबको मातृवत् संमान करे। बहुतों के मत से यह सदा छः पर्ष के रूप में रहते हैं अर्थात काम, क्रोध, ईर्षा, द्वेष, छल, कपटादि से न्यारे केवल माता पिता के सहारे बने रहते