पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२७४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२५२ [ प्रतापनारायण-प्रन्यावलो सोचते ही समस्त प्रलोभन अदृश्य हो जाते हैं और निर्विघ्न धर्मानंद रह जाता है । वरंच विघ्नकारक लोग वा पदार्थ स्वयं उसे योग देते हैं, जैसे अंत में घोप स्वयं कालीपूजा में सम्मिलित हुआ था। ____७. कांग्रेस श्रीकृष्ण है और प्रजा हितैषी देशभक्तों की जनता श्री राधा है अथ व विरोधियों का दल अयन घोष है, जो देखता है कि इस संयोग में हमारे लिये कुयोग है। न ठकुर सुहाती कह के मनमानी पदवी पाने का योग है न अपनी इच्छा ही को शासन प्रणाली का मूल मंत्र बना के काले कलूटे मूर्ख गुलामों पर स्वेच्छाचारिता का ढंग जमाने का सुयोग है। धीरे २ मबकी आँखें खुलती जाती हैं। सब अपना स्वत्व पहिचानते जाते हैं। सड़ी २ बातों को पुकार सात समुद्र पार पहुँच रही है । ता घोष महाशय रोषपूर्ण हो के वागी कृपाण धारण करते हैं औरच राहते हैं कि कृष्ण का शिर उड़ा दें। फिर तो राधा हमारी हई है । पर राधा जी देखती हैं कि न्याय के आगे स्वेच्छा वार, देशभक्ति के आगे स्वार्थपरता, महारानी के प्रबल प्रताप के सन्मुख हमारा दुःख क्लेश निरा निर्मूल है, इससे धैर्य के साथ अपने इष्ट साधन में लगे रहना चाहिये । यदि घोष को बुद्धि हो तो देख सक्ता है कि जिस महाशक्ति (विक्टोरिया) का आश्रय मुझे है उसी का सहारा इन्हें भी है । जो मेरी सुखादातृ दुःखहर्तृ है वही इसकी भी है । तो क्या ही कहना है, दोनों ओर आनंद है। नोचेत् वृद्धि का भ्रम है। जगदम्बा एक को न है। काले, गोरे, बुरे, भले, निर्धन, धनी सभी उसी की प्रजा हैं । खं० ६, सं० ११ (१५ जून ह० सं० ६) पंच परमेश्वर पंचतत्व से परमेश्वर मृष्टि रचना करते हैं, पंच संप्रदाय में परमेश्वर की उपासना होती है, पंचामृत से परमेश्वर की प्रतिमा का स्नान होता है, पंच वर्ष तक के बालकों का परमेश्वर इतना ममत्व रखते हैं कि उनके कर्तव्याकर्तव्य की ओर ध्यान न दे के सदा सब प्रकार रक्षण किया करते हैं, पंचेन्द्रिय के स्वामी को वश कर लेने से परमेश्वर सहज में वश हो सकते हैं। पंचवाण (काम) को जगत जीतने की, पंचगव्य को अनेक पाप हरने की, पंचप्राण को समस्त जीवधारियों के सर्वकार्य संगदन की, पंचत्व (मृत्यु) को सारे झगड़े मिटा देने की, पंचरत्न को बड़े बड़ों का जी ललचाने का परमेश्वर ने सामयं दे रक्खी है । धर्म में पंवसंस्कार, तीर्थों में पंचगंगा और पंचकोसी, मुसलमानों में पंच पतित्रतात्मा (पाकपंजतन ) इत्यादि का गौरव देख के विश्वास होता है कि पंव शब्द से परमेश्वर बहुत घनिष्ठ संबंध रखता है । इसी मूल पर हमारे नीति विदांबर पूर्वजों ने उपयुक्त कहावत प्रसिद्ध की है जिसमें सर्वसाधारण संसारी व्यवहारी लोग