पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२८६

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यह तो बतलाइये आप ठाकुर जी के मंदिर में तो बिना नहाये ब्राह्मणों को भी नहीं आने देते तथा उनको मूर्ति एवं मरे हुए संबंधियों का मृत शरीर कोई उच्च जाति का हिंदू भी छू ले तो नाक भौंह चढ़ाते हैं, पर उनको पोशाक और उन्हें कफन वही पहिनाते हैं जों विलायत के कोरियों का बुना हुआ है तथा खलीफा जी के द्वारा सूई में थूक लगा २ के सिया गया है। यह कहाँ को पवित्रता है ? यदि देव प्रतिमा की प्रसन्नता और मृतकों की सद्गति, पवित्रता पर निर्भर समझते हो तो देश के कपड़ा बुनने बाले और हिंदू दरजी मर गये हैं ? अथवा परदेशियों और परमियों से भी बह गए हैं जो उनकी कारीगरी को इतना उत्साह भी नहीं देते ? ___ और मुनिए । यदि घर में कुना, कोआ कोई हड्डी डाल दे अथवा खाते समय कोई मांस का नाम ले ले तो भी तो आप मुंह बिचकाते हैं पर बिलायती दियासलाई और विलायती शक्कर, जिनमें हड्डी तथा रक्त दोनों पड़े हुए हैं, सो भी न जाने कि किन २ जानवरों के, वह आरती के समय बत्ती जलाने की सिंहासन के पास तक रख लेते हैं और भोग लगा के गटक जाने तक में नहीं हिनकते। यह कहां का खाद्याखाद्य विवेक है ? क्या देश में दियासलाई बनाने की विधि जानने वाले मर गये हैं 2. अथवा खांड बनाने के नियम हर गए हैं जो आप से इतना भी नही होता कि मथुरा वाली आर० एल० वर्मन कंपनी की मदद कीजिए और साबुन तथा दीपशलाका के कारखाने में दो एक शेयर हिस्से) ले लीजिए तथा बनारसी चीनी खाया कीजिए ? और लीजिए । देश की दरिद्रता और उद्धार के विषय में लेक्चर देते समय तो आप श्रोताओं के कान की चली उड़ा देते हैं और लेख ऐसे लिखते हैं कि छापने के समय कम्मोजीटर नाकों आ जायें पर अपने शरीर को शिर से पैर तक विलायती हो वस्त्र शस्त्र में मढ़े रहते हैं। घर में दमड़ी की सूई भी विलायती, खाने की दवा भी विलायती, पीने की मदिरा भी विलायती, नहाने का साबुन भी विलायती, साथ में कुता तक विलायती, देशी केवल मुंह का रंग दिखाई देता है । क्या इन्ही लक्षणों से देश का दरिद्र मिटाइएगा और देशोद्धार करनेवालों में पांचवें सवार बनिएगा ? अथवा उपर्युक्त वस्तु यहाँ नहीं मिल सकती, वा बनना असंभव है, वा दाम अधिक लगते हैं, वा देर तक ठहरती नहीं है ? पर हां, शायद जी डरता हो कि कहीं काट न खायें, क्योंकि आप सो ज्यंटिलम्येन अर्थात मुलायम आदमी है न ! आगे चलिए । आपको नेचर के तत्वज्ञान और उसकी पूरी परवो का दावा है, इससे हम पूछना चाहते हैं कि यह बात ला ऑफ नेचर की किस दफा में लिखी है कि यो देश अथवा जाति आज जिस दशा में है उसी में प्रलय तक बनी रहेगी अतः उसे