पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२८७

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यह तो बतलाइये 1 २६५ अपने सुधार का यत्न करना जुर्म है और और ऐसे जुर्म करने वालों से मुखालिफत करना ही नेचर का सबसे बड़ा उसूल, राजभक्ति का मूल और मसलहत के जहाज का मस्तूल है ? यह भी कहिए आपका जन्म हिंदुस्तान में हुआ है, खाना पीना, रीति व्यवहार, ब्याह शादी भी हिंदू ही मुसलमानों के साथ होती है, मरने पर भी यही को पृथिवी अथवा जल में मिल जाइएगा, फारस, अरब तथा इंग्लैंड में जाइए तो शायद कोई बात भी न पूछे, क्योंकि आपको भाषा भेष, धर्म कर्म,आहार विहार सब वहाँ वालों से पृथक है। ऊपर से तुर्रा यह है कि आप जहाँ भए उपजे हैं वहीं कोई बड़े विद्वान धनवान नहीं हैं, फिर परदेश में प्रतिष्ठा पाने की तो क्या आशा है। पर इन बातों को जान बूझ के भी, पुलिस की उरदी पहिनते हो, टिकिया विल्ला लचका आदि धारण करते ही, अपने देश भाइयों को सताना, सड़ी २ बातों में चुगली खाना, कहनी अनकहनी कहना, बरंच कभी-कभी उन पर हंटर तक फटकारते रहना कहां की बुद्धिमानी है ? अपनी डिउटी में न चूकिए, आला हाकिमों को अवश्य प्रसन्न रखिए, किन्तु यह समझे रहिए कि आपका बर्ताव किसी कानून का हुक्म नहीं है, आप इस मुल्क के फतेह करने वाले नहीं हैं । साहब बहादुर बलायत चल देंगे तब आप को साथ भी न ले जायंगे। आप का रंग भी ऐसा नहीं है कि स्वामख्वाह रियायत की जाय । नौकरी की जड़ सदा धरती से सवा हाथ ऊपर रहती है। इससे उस पर भरोसा करना नाहक है । परमेश्वर न करे कल को किसी अपराध के कारण छुड़ा दिए जाओ तो रुजगार को आशा किससे करोगे ? जुरूरत पड़ने पर कर्ज किस के यहां से काढ़ोगे ? दुःख, सुख, तंगी, बहाली आदि में किसका आश्रय ढूंढोगे? इन्ही हिंदुस्तानियों ही का न, जिन्हें आप इस समय धमकाते, जिन पर हुकूमत जताते हैं, जिन्हें मनमानी घर जानी कार्रवाई का निशाना समझते हैं । बतलाइये तो उस समय चित्त को क्या दशा होगी? इतना और भी । भला आप के ऊपर और भी कोई हाकिम है । भारतवासियों को कोई सामर्थ्य न सही पर अपना दुख रोने की शक्ति है । यहां माना कि बहुत लोग आप ही का पक्ष करेंगे किंतु यहां से विलायत और विलायत से परमेश्वर के घर तक कोई भी ऐमा है जिसे न्याय की ममता तुम्हारे ममत्व से अधिक हो ? राजराजेश्वरी का प्रताप अथवा परमेश्वर का अचल नियम भी कोई वस्तु है ? यदि है तो आप फिर क्यों चाहते हैं कि 'भावै हिय कर हम सोई' । इस से तो यही न उत्तम है कि ऐसे काम कर जाइए जिन्हें स्मरण कर के सब सदा आसीसते रहें। पूछना तो बहुत कुछ है पर इस समय इतना ही बहुत है। खं० ७, सं० १-२ ( १५ अगस्त-सितंबर ह० सं०६)