पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२९५

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श्री भारत धर्म महामंडल जिन विदेशी इतिहास लेखकों का यह मत है कि 'आर्य जाति यहाँ को सनातन निवासिनी नहीं है, बरंच आदि में ईरान अथवा अन्य किसी देश से आ के और यहां के प्राचीन निवासियों को हरा के अपना प्रभुत्व जमाया तथा घर बनाया था उनका कथन तो हमारी समझ में नहीं आता, क्योंकि उन्ही के वचनानुमार सृष्टि को बने हुए अनुमान छः सहस्र वर्ष बीते हैं और इतने थोड़े दिनों का पता लगाना खोजी के लिए दुस्साध्या चाहे जितना हो असाध्य नहीं है। फिर आज तक किसी ने क्यों न बतलाया कि आर्यो के आने से पहिले इस देश का क्या नाम या ? भोलस्थान, कोलस्थान, गोंडस्थान अथवा और किसी असभ्य जाति का स्थान ? यदि कोई महात्मा कुछ अनुमान कर कराके कोई नाम नियत भी कर देंगे तो हमें यह पूछने का ठौर बना रहेगा कि भिल्ल कोलादि तो आर्यो हो की भाषा के शब्द हैं तथा स्थान, सितान और सिता इत्यादि भी संस्कृत ही के स्थान से बिगड़ बिगड़ा के बन गए हैं, और जो जाति यहाँ आर्यों से पहिले, रहती थी वह भी संस्कृत ही बोलती थी, इसका क्या प्रमाण है ? इसका उत्तर आपके पास आज केवल इतना ही है कि आगे क्या था यह कोई जानता नहीं है। हो, अनुमान से ऐसा ही जान पड़ता है ( जैसा विदेशो इतिहास लेखकों का मत है )। पर स्मरण रखिए कि आपका यह अनुमान ठीक नहीं है क्योंकि यदि आप ईश्वर को मानते हैं तो उसे अनादि सर्वशक्तिमान और सृष्टिकर्ता भी अवश्य कहते होंगे। तथा यह तीनों गुण तभी रह सकते हैं जब सृष्टि का आदि अंत न ठहराइए । नहीं तो बतलाइए तो, छः सहस्र वर्ष पहिले ( जब सृष्टि न बनी थी ) तब ईश्वर क्या कर रहा था? यदि कुछ न करता था कहिए तो उसका सर्वशक्तिमानत्व और सृष्टिकर्तृत्व अनादि नहीं रहने का, बरंच ईश्वर का अस्तित्व ही व्यर्थ हो जायगा। यदि ईश्वर को न मानिए तो भी कृपा करके यह बतलाइए कि जिन पदार्थों और संघट्टनों से सृष्टि बनी है वह छः सहस्र वर्ष पहिले थे या नहीं ? यदि थे तो सृष्टि क्यों न बन गई मोर यदि न थे तो सृष्टि रचना के समय कहाँ से कूद पड़े ? ऐसी २ बातों का विचार करने वैठिए तो अंत में निकाल यही निकलेगा कि आस्तिक और नास्तिक दोनों मतों के अनुसार जब से ईश्वर अथवा सृष्टि की सामग्री है तभी से उसका काम अर्थात् जगत का प्रादुर्भाव और तदन्तःपाती वस्तुओं की दशा का परिवर्तन होता रहता है। रहा मोटी रीति पर. समय का कोई धढ़ा गांव लेना, उसके लिए जिनके यहां आदम से सृष्टि का आरंभ माना जाता है उनके यहां हमारे देश का कही नाम भी नहीं लिखा, फिर उन लोगों के अनुमान का क्या ठीक कि वे किस मूल पर ऐसा अनुमान करते हैं वहीं जाने पर १८ MPENSARDASHAMATA