पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७६
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-ग्रंथावली और पूर्वोक्त सभावों की दशा के द्वारा अनुभव लाभ करने से क्या उद्देश्य को उत्तमता, कार्याध्यक्षों की कुशलता एवं कार्यवाही की सुस्पष्टता से जन्म दिन से आज तक उत्तरो- तर साफल्य प्राप्त किया है । पहिला महाधिवेशन हरिद्वार जी पर हुवा था। उस समय देश के महान् समुदाय को इसका मतरिक मनोरथ भलीभांति विदित न था। इससे बहुत लोगों ने सहानुभूति न प्रकाश की थी। पर तो भी थोड़े से चुने २ दूरदर्शी विद्वान और प्रतिष्ठित हिंदुओं ने कटिबद्ध हो के उत्साहपूर्वक इसका मूल संस्थापन किया था जिसकी वृद्धि श्री वृंदावन वाले दूसरे ही समागम में बड़ी सफलता के साथ देखने में आई और विचारशीलों को विदित हो गया कि बहुत कोलाहल न मचने पर भी इसका कार्य उचित उन्नति के साथ होता रहा है और होता रहेगा। आज असाधारण लोगों को एक संतोषदायिनी संस्था को इस के साथ ममत्व भी है। कई एक धर्म सभाएं इसे अपना अभिभावक भी समझती हैं। 'सुदर्शन चक्र' नामक एक उत्तम पत्र भी इसी के उद्योग से प्रकाशित होता है तथा कई स्थानों पर इसी के कार्य संपादकों के प्रयत्न से बाल्य- विवाहादि कई एक कुरीतियों के निवारण की समयोपयोगी प्रथा का भी सूत्रपात्र हो गया है। क्या यह कृतकायंता के लक्षण सहृदय मंडली के लिए तुष्टिदायक नहीं है, और यह आशा नहीं उपजाते कि यों ही काम होता गया तो बहुत कुछ हो रहेगा ? अब तीसरा समारोह इसी मास में इंद्रप्रस्थ के मध्य निर्धारित हुआ है। परमेश्वर करे इसमें और भी अधिक संतोषदायक साफल्य का दर्शन हो । इधर कांग्रेस के महाधिवेगन का समय भी निकट आ रहा है और उसकी समाप्ति वाले दिन सोश्यत्य कांफ्रेंस की भी अवश्य ही बैठक होगी। उसमें यदि इसकी ओर से भी कुछ सूज्जनों का पदार्पण हो तो आर्य जाति के लिए एक सच्ची सुविधा की संभावना है। क्योंकि जिस प्रकार राजनैतिक सुधार के लिए नेशनेल कांग्रेस का सा उद्योग कर्तव्य है वैसे ही सामाजिक संशोधन के निमिन कांफरेंस की भी बड़ी ही आवश्यकता है । वरंच इसके लिए उसका और उसके हेतु इसका बड़ा भारी प्रयोजन है। क्योकि राजनैतिक भार अति भारी न हो तो लोग सामाजिक सुधार में बड़ा भारी सहारा पाते हैं और जिनकी सामाजिक दशा अच्छी होती है उनका राज परिकर की दृष्टि में आदर रहता है। इससे उनका शासन निरी मनमानी रीति से नहीं किया जाता और समाज उन्हीं के सुधारे सुधर सकती है जो समाज में आद्रित हों, उसकी रीति नीति भली भांति जानते मानते हों तथा जनता की रुचि के अनुसार उसे उपर्युक्त मार्ग पर ला सकते हों। ऐसे लोग हमारे मुसलमान भाइयों को विद्वान धामिक मौलवियों में तथा हमें इस मंडा के सहतियों ही में मिलेंगे। क्या भा० धमः मं० के महामंत्री हमारे श्रद्धापद पंडितबर श्री दीनदयाल महोदय हमारे विचार पर ध्यान दे के आगामी अधिवेशन में इसकी चर्चा चलावेंगे ? खं० ७, सं० ४ ( १५ नवंबर ह० सं० ६)