पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३०४

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२८२
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२८२ ] [ प्रतापनारायण-ग्रंपावली जिस व्यक्ति वा समूह को अपना समझ लेते हैं, जिस कार्य को करणीय समझ लेते हैं, उसके लिए जब तक धोखा न खायं, तन मन धन से उपस्थित रहते हैं। बरंच अनेकशः प्राण तक दे देने को प्रस्तुत रहते हैं। इसके अतिरिक्त यह तो एक साधारण बात है कि शत, ऊष्ण, वर्षा सहने में, दिन भर में दस पंद्रह कोस पांव २ चले जाने में किसी की लज्जा, भय, संकोच से निश्चिन्त रहने में, काम पड़ने पर कटु वाक्य एवं अयोग्य बर्ताव की उपेक्षा कर जाने में नगर वालों से कहीं उत्तम होते हैं और यही गुण हैं जिनसे प्रत्येक कार्य की सिद्धि संभावित होती है। पर कार्य क्या है यह इनकी समझ में क्या बड़े बड़ों की समझ में आप से आप नहीं भा सकता। विशेषतः इन दिनों जब कि देश में चारों ओर दरिद्र के प्राबल्य से पेट की चिंता के मारे हमारी बिचार शक्ति उकसने ही नहीं पाती । ऐसे अवसर में वे लोग आप से आप क्या समझ सकते हैं जिन्होंने स्कूल तथा कालेम का कभी मुंह नही देवा, सुबत्ताओं के वचन कभी स्वप्न में नहीं सुने, राजनीतिज्ञों, समाज संस्कारकों, समय की चाल के ज्ञाताओं के द्वार पर भी पहुंचने की क्षमता नहीं रखते। हां, यदि आप शहर की गलियों के परिभ्रमण का मोह चटकदार कपड़े वाले मित्रों के संलाप का सुख बाहर सुन के 'पुलक प्रफुल्लित पूरक गाता' हो जाने की लत, हिंदी शब्दों को मुख पर एवं कान तक आने देने से घृणा परित्याग करके कभी २ अवकाश पाने पर उनकी ओर चला जाना और अपनी ओर से उनकी झिझक मिटाना तथा स्नेहपूर्ण सरल बातों में उन्हें अपना तत्व, उनका स्वत्व, माननीय कर्तव्य का महत्व समझना स्वीकार कीजिए तो थोड़े ही दिनों में देखिएगा कि आपके विचारों की पूर्ति का संतोषदायक सूत्रपात होता है कि नहीं। धन और जन के द्वारा जितनी सहायता आपके सदनुष्ठानों में आज मिलती है उससे दूनी सहायता मिलने का हम बीमा लेते हैं। दिहात के पुराने गृहस्थ यद्यपि मोहे और मैले वस्त्र पहिने रहते हैं पर उदारता और उत्साह में आपके कुरता, कोट, छक लिया- धारी सहकारियों से चढ़े ही बढ़े निकलेंगे। इसके अतिरिक्त उनका साथ देने वाले भी आपके साथियों से अधिक संख्या मोर सच्चाई रखते हैं। कसर इतनी ही है कि वे नये जमाने के रंग ढंग से बहुधा अज्ञात हैं। यदि आप उन्हें समझा देंगे कि थानेदार साहब लाट साहब नहीं हैं कि तनिक २ सी बात पर तुम्हें धमका के मनमाना बर्ताव कर सकें, उनके ऊपर भी कोई हाकिम है जो बिनय सुनने और प्रमाण पाने पर न्याय के द्वारा तुम्हारा काल्पनिक भय मिटा सकता है, हाकिम लोग हौमा नहीं हैं कि तुम उनसे अपना दुःख भी न सुना सको, जब तुम नहर के जल से खेत बोचने के लिए राजस्व दे चुके अथवा अदालत का उचित खर्चा अदा कर चुके तब फिर किसी को कुछ देना न्यायानुमोदित नहीं है, ऐसी दशा में उच्चाधिकारियों से निवेदन कर देना कोई पाप नहीं है, तुम्हारे घर की स्त्रियां बकरी भेड़ नहीं हैं, उनका भी सब बातों में उतना ही अधिकार है जितना तुम्हारा है, अतः उनको अमाद्रित रखना लोक परलोक दोनों में विडंबना का कारण होगा, घर में कन्या का जन्म होना वस्तुतः अभाग्य का चिह्न नहीं है, बराबर के कुल में उसे ब्याह देना कोई पाप नहीं है, केवल प्रम के