पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३०८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२८१ [प्रतापनारायण-प्रपावली स्वला अवस्था वाली स्त्री के साथ अनुचित व्यवहार हुमा है, वही विचारी पर्दे में रहने वाली बहू बेटियों का डाक्टर के सामने अपमानित और कचहरी में आकर्षित होना अमिट हो जायगा, बड़े २ प्रतिष्ठितों का लाख का घर खाक हो जायगा, पुरुषों की नाक पर छुरी फिर जायगी, पानीदार लोग यदि डूब न मरेंगे अथवा विषादि के द्वारा आत्मघात न करेंगे तो भी किसी को मुंह दिखाने के योग्य तो अवश्य ही न रह जायगे । फिर सच्चे अपराधी अथवा मिथ्या कलंक लगाने वाले उपाधी को दंड तो जब मिलेगा तब मिलेगा। इसी से लाखों हृदयवान लोगों का कलेजा कांप रहा है। समाचार पत्रों और सभागों में हाहाकार मच रही है, चारों ओर से बड़े लाट साहब की सेवा में निवेदन जा रहे हैं कि इस विषय में शीघ्रता न की जाय, बहुत सोच समझ से काम लिया जाय । पर विचारशक्ति को निश्चय नहीं है कि इन विनयपत्रों पर कुछ भी ध्यान दिया जायगा। लक्षण कुलक्षण ही देख पड़ते हैं। इधर तो बिल के विरोधियों की संख्या यद्यपि अधिक है किंतु समर्थक लोग बड़े २ हैं और उधर हमारे गवर्नर जनरल महोदय ने एतद्विषयक विचार के लिए केवल पांच सप्ताह का समय दिया है । भला इतने अल्पकाल में इतनी बड़ी बात का निर्णय क्या होना है। हमारे धर्म प्रतिष्ठा और समाज का महा अपमान होना निश्चित है। पर जो लोग इस विषय के कर्ता संहर्ता हैं उन्हें हमारे मर्मातक आघात का बोध भी नहीं है । उलटा यह विश्वास है कि यह नियम चल जाने से स्त्री जाति की रक्षा होगी। फिर हम क्यों कर कहें कि सहबास बिल न पास होगा। हाँ, अपने बचाव का उपाय करने में चूकना हृदयवान पुरुषों को उचित नहीं है, इससे हमारे पाठकों को चाहिए कि आलस्य छोड़ के, सारे संसार का संकोच छोड़ के,. जिस प्रकार हो सके बहुत शीघ्र यथासंभव बहुत बड़ी सभाएं जोड़ के, निवेदन पत्रों के द्वारा हाथ जोड़ के, सर्कार को समझावै कि इस विषय को हमारे ही हाथ में रहने दे। इधर देश भाइयों को भी पूर्ण उद्योग के साथ चिता कि अब लड़के लड़कियों के ब्याह को गुड़िया गुड्डे का ब्याह समझना ठीक नहीं है । बस इतना ही भर हमारा कर्तव्य है । उसे करना ही परम धर्म है । पर होगा क्या, परमेश्वर जानता है। शायद हमारी अबला बालाओं पर दया करके वह लोगों की मति पलट दे। किंतु वर्तमान आसार यही निश्चय दिलाते हैं कि सहबास बिल अवश्य पास होगा और उसके द्वारा सहस्रों घर त्राहि २ करेंगे । ख• ७, सं०७ (१५ फरवरी ह. सं०७)