पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३०९

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न जाने क्या होना है हमारे पाठको मे से ऐसे बहुत थोडे होगे जिन्होने स्त्रियो की गीतो मे 'कंचन पार', 'सोने का गहवा', मानिक दियना' (चिराग ), इत्यादि शब्द न सुने हो अथवा होलियो मे 'कंचन कलश', 'कंचन पिचकारी', 'केशर रंग' इत्यादि पद स्वयं न गाते हों। और यह बातें केवल कवियो का बढावना नहीं है, कई एक इतिहास ग्रंथो मे बहे पुष्ट प्रमाणो के साथ लिखा हुवा है कि अभी दो सौ वर्ष भी नहीं बोते कि भारत मे यह रीति थी कि जिस गृहस्थ के यहां ब्राह्मणी अपवा सजातियो का निमंत्रण होता था उसके यहां सोने चांदी के बर्तन निकलते थे। बरंच कही २ इन पात्रो का बाहुल्य ही प्रतिष्ठा का लक्षण समझा जाता था । पर आज तो बतलाइए कि फो सैकड़ा कितने गृहस्थो के यहाँ आप सोने की सम्पुटी ( बहुत छोटी कटोरी ) भी दिखला सकते हैं ? और सुनिए, कई एक जातियो मे यह प्रथा है कि जो कोई अपनी कन्या का विवाह कुलीन बर के साथ किया चाहता है उसे बर के कुल की उच्चता के अनुसार सैकडो बरंच सहस्रो रुपया केवल कन्यादान को दक्षिणा मे देना पड़ता है। यद्यपि इस समय की सभ्यता के प्रेमी इसे हानिकारक, निरर्थक और महात्याज्य समझते हैं और समय के प्रभाव से है भी यो ही लोक और वेद दोनो के विरुद्ध है तथा त्यागे बिना अब निर्वाह नहीं दिखता पर इस प्रकार की रीतियो से यह तो भले प्रकार प्रदर्शित होता है कि अभी बहुत काल नहीं बीता कि हमारे देशभाई अवसर पड़ने पर अपने बन्नु बान्धवादि को प्रसन्नता सम्पादन करने के निमित्त सैकडो सहस्रो स्पया उठा देने को सामर्थ्य रखते थे। और इस रूप मे व्यय करना आज कल गिरे दिनो के लिए अनुपयुक्त चाहे कह लीजिए पर वास्तव मे बुरा नहीं कहा जा सकता। अपने भैयावारो, नातेदारो, आश्रितों तथा देश के गुणियो को सहायता मिलती है, उनकी उत्साह वृद्धि से समय २ पर दूरस्य आत्मीयो का समागम होता रहता है, स्वदेशीय शिक्षा की उन्नति होती रहती है। फिर भला कन्या जामातृ सम्बन्धी तथा पुरोहितादि का तो कहना ही क्या है बरंच फुलवारी, आतिशबाजी, मिठाई आदि बनाने वाले तथा नाचने गाने वालो तक को देने मे बुराई है ? यह आप का रुपया लेके कही चले तो जाहीगे नहीं । देश का देश ही मे रहेगा, जिसे अनेक मार्गों से फेर ले सकते हैं। पर अब रुपया है कहां जो किसी अपने अथवा अपने देश वाले को उत्साहपूर्वक दिया जाय और दूसरे रीति पर लोटा पाने का भरोसा किया जाय नोचेत उसके द्वारा स्वजनो को गुख पाते देख के यो ही सुख का अनुभव कर लिया जाय । आज तो रोटियो के लाले पड़े हैं। लाखो लोग खाने को तरसते हैं। सहस्रों श्वेतवस्त्रधारी ऐसी रीति से दिन काटते हैं कि सहृदय पुरुष उनका भीतरी हाल सुन समझ के आंसू बहाए बिना रही नहीं सकता। परमेश्वर न करे ऐसी दशा मे कोई राजनैतिक अथवा सामाजिक आपत्ति आ पड़े तो मुंदी भलमंसी का बचना