पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३१

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दयापात्र जीव ] हम वहां के बड़े हाकिमों से विनय करते हैं कि जैसे रेल के द्वारा सर्वसाधारण को मोर सब प्रकार का आराम दिया जाता है वैसे ही इस दुःख के निवारण का भी कुछ प्रबंध होना चाहिए जो कर्मचारियों के अत्याचार से इस महकमे का एक महा कलंक हो रहा है । प्रायः देखा गया है कि रेल के बड़े हाकिम अपने महकमे की बदइंतजामी के दूर करने में और हाकिमों से अधिक तत्पर रहते हैं, इसो से यह कष्ट दिया जाता है । आशा है कि हमारे निवेदन पर बहुत शीघ्र ध्यान देंगे। बाबू साहबो ! हम आपसे भी आशा करते हैं कि आप लोग हमारे इस लेख से अप्रसन्न न होंगे, क्योकि हमारा प्रयोजन किसी के चिढ़ाने से नहीं है और न रेल से हमारी कोई निज की हानि है, पर हाँ, अपने देश भाइयों का दुःख सुख ज्यों का त्यों प्रकाश करना हमारा मुख्य कर्तव्य है । आप लोग भी तो आखिर पढ़े लिखे समझदार हैं। क्या अपने भाइयों की सहानुभूति ( हमदर्दी ) को आपका अंतःकरण अच्छा न समझता होगा? आश्चर्य हैं जो न समझे। हमारा काम केवल कहने मात्र का है। करना न करना आपके आधीन है। परंतु शास्त्र के इस वचन पर ध्यान दीजिए कि "अवश्यमेव- भोक्तव्यं कृतंकमशुभाशुभम् ।" खं० १, सं. ३ ( १५ मई, सन् १८८३ ई०) दयापात्र जीव आम हमें उस अतीव श्रेष्ठ जोव का वर्णन करना है जिस क उत्तम गुणों को सब देश के, सब श्रेणी के, सब वय के, सब मत के, सभी मनुष्य भली भांति जानते हैं । यह वह पशु है जो अपने ज्ञान, स्वामिभक्ति, धैर्य, साहस, सहनशीलता, वीरता आदि अनेक सदगुणों में अद्वितीय है। इस जंतु का नाम मातृभाषा में कुत्ता है । अंग्रेजों में इसको इतनी प्रतिष्ठा है कि हमारे भाई बड़े २ पंडित, हमारे यजमान बड़े २ जमींदार, सेठ, साहूकार, महाजन,लाला लोग, बड़े २ मौलाना, बड़े २ अखबारनवीस,बड़े २ अंग्रेजी- बाज, किरानी और बड़े २ बाबू लोग बड़ी २ खुशामद दरामद, भेंट पूजा करने पर भी जिन राजपुरुषों के पास तक बड़ी कठिनाई से पहुँचते हैं यह उत्तम जीव उन्हीं के बराबर बग्घी पर बैठ के हवा खाने निकलता है और प्रिय पुत्रों के समान स्त्रो पुरुषों की गोद में खेलता है । हमारे प्रिय पाठक यह न समझें कि हम केवल अंग्रेजों के आदर करने से इसे आदरणीय कहते हैं । नहीं, वरंच हमारे मनु भगवान, जिनके नाते हम मनुष्य कहलाते हैं, वेद में जिनके बचनों को औषधियों का औषध लिखा