पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३१४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२९२ [ प्रतापनारायण ग्रंथावली कृष्णादि की भी कथन मात्र के लिए, पर देश भाइयों के द्वेष, उनके प्रति उपेक्षा, स्वार्थपरता आदि में ऐसी कुचली हुई कि उकसना असम्मी । और उधर राजा स्वयं सताने में कटिबद्ध । रोवे तो फिस के आगे ? इन दिनों परमेश्वर की इतनी तो दया है कि राजा को प्रजापीड़न में आनंद नहीं आता, कोई २ राजकर्मचारी ही कभी २ अपने अधिकार को कलंकित तथा श्रीमती की प्रतिज्ञा की अवज्ञा कर उठाते हैं, सो भी बहुत से बहाने गढ़ के । किंतु हम वहीं बने हैं अस्मात् ऐसे सुराज्य में भी वैसा ही दुःख भोगते हैं। जिन जातियों में धर्म की समता है, आपस की एकता है, चित्त की दृढ़ता है, उनके पवित्र स्थानों का भी कोई ऐसा अपमान कर सकता है जैसा हमारों का ? गत वर्ष दरभंगा में सहाजोर जी का मंदिर तोड़ के हमारे हृदय पर घाव किया गया और बहुन रोने चिल्लाने हाय २ मचाने पर आंसू पोंछ दिए गए । सो भी प्रजावात्सल्य के अंचल में नहीं किन्तु पालिसी के कम्बल से । इस घटना को बरस दिन नहीं बीता कि अब काशी जी में राममंदिर पर दांत लगाया गया है और भगवान जानकीवल्लभ हमारे विचार को झूठा करें, लक्षण अच्छे नही देख पड़ते। क्योंकि इधर तो वाराणसी के अतिरिक्त किसी नगर में इस आने वाली घोर विपत्ति की चर्चा भी ऐसे सुन पड़ती है कि नहीं के बराबर मानी अन्य स्थानीय हिन्दुओं को उस मंदिर से कुछ सम्बन्ध ही नहीं है और उधर लेफ्टिनेंट गवर्नर और चीफ कमिश्नर साहब की आज्ञानुसार यह विषय म्युनिसिपल बोर्ड के माथे छोड़ दिये जाने पर उपर्युक्त दोनों माननीय अधिकारियों के द्वारा हमें यह आश्वासन मिलने पर घबराओ नहीं, मुकद्दमा तुम्हारे ही सजातियों के हाथ है, फिर वहां के कलक्टर साहब म्युनिसिपैलटी के निर्णय को निर्णय हो नहीं समझते। जज साहब से प्रार्थना की 'दाम दिलवा दिया जाय और मन्दिर तोड़ डाला जाय', मानो देवमन्दिर भी साधारण घर है। और सुनिए, जज साहब ने भी विज्ञापन दे दिया कि जिसे कुछ उन करना हो चौदह मार्च बक कर ले। इस अंधेर का ऐसे राज्य में इतना साहस देख के ऐसा कौन है जो आश्चर्य और शोक न करे, पर जो इसके कर्ताधर्ता हैं वे पर साल देख चुके हैं कि इस मृत जाति से होना हो क्या है। हाय हिंदुओ! अब तुम्हारे देव मंदिर टूटने के लिए बिकने लगे। यदि अब की उपेक्षा करोगे तो कल को, परमेश्वर न करे, विश्वनाथ और जगन्नाथ बदरीनाथ के मंदिर भी कोई किसो सड़क अथवा आफिस के लिए मोल ले के साफ कर दिए जायेंगे। इससे चाहिए कि धर्म रक्षा के लिए उन्मत्त हो जाओ और नगर-नगर में बड़ी से बड़ी सभाएं करके गवर्नमेंट को अपना दुःख प्रकाश करो। काशी वालों की सहायता के लिए रुपया भेजो और यहां से बिल'यत तक उद्योग कर के यह मंदिर ही म बचाओ बरंच आगे के लिए ऐसी आज्ञा मंगा लो कि कभी कोई ऐसा कर न सके । जिन लोगों को मूर्ति पूजन में श्रद्धा नहीं है उन्हें भी जातीय गौरव के अनुरोध से साथ देना चाहिए। जैनियों को भी सम्मिलित होना चाहिए क्योंकि वे भी मूर्ति पूजक हैं और हिन्दू हैं। बरंच मुसलमानों को भी समझना चाहिए कि मसजिद भी उसी जाति के ईश्वरीय भवन हैं जो प्रजा कहलाती है। तभी काम चलेगा नहीं अब कुशल नही