पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३१७

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'एक साधे सब सधै सब साधे सब जाय' ] २९५ उनका अनुसरण करे तो देखिए क्या होता है, क्योंकि 'एक साधे सब सधै' । परंतु यों ऊपर मन से चाहे जितने लोग चाहे जिन बातों का होरा मचाते रहें पर होना हवाना कुछ नहीं बरंच व्यर्थ समय और धन की हानि होगी। क्योंकि 'सब साधे सब जाय' । इससे हमारे देशोन्नति चाहने वालों को चाहिए कि अपने कर्तव्य के हेतु पहिले भली- भांति आत्मसमर्पण में उद्यत हो जायं फिर देखेंगे कि कितने शीघ्र और कैसे आधिक्य के साथ कृतकार्यता लब्ध होती है तथा सहायता एवं सहायक आप से आप कितने आ मिलते हैं। ___अब रही दूसरी बात, अर्थात एक काम के पूरा करने में पूरा उद्योग करने से अन्य कार्य स्वयं सिद्ध हो रहे हैं अथवा सिद्धि के निकटस्थायी हो जाते हैं। उसके लिए बहुत से उदाहरण देना केवल कागज रंगना है। प्रत्यक्ष ही देख लीजिए कि यदि कोई किसी वृक्ष की डाल २ पत्ता २ सींचना चाहेगा तो परिश्रम बहुत अधिक होगा एवं जल भी बहुत सा वृथा बहाना पड़ेगा किंतु फल के स्थान पर वृक्ष ही सड़ जायगा। पर यह न करके केवल मूल का सेवन करने में न उतना श्रम है न जल का व्यय और सिद्धि पूर्ण रूप से प्राप्त हो जायगी। बस इसी दृष्टांत पर दृष्टि रख के विचार लीजिए कि वह एक कौन सा काम है जिस पर जुट जाने से भारत के समस्त दुख शीघ्र और सहज दूर हो सकते हैं। हमारी समझ में समाज का उद्धार राजनीति का मुधार और धर्म तथा सद् गुणों का प्रचार सब कुछ तभी हो सकता है जब पेट भरा हो । और हेर फेर के सब लोग सब प्रकार उपाय इसीलिए करते हैं जिसमें यहां का दरिद्र दूर हो और अन्न वस्त्र जनित असुविधा जाती रहे । तभी कुछ हो सकेगा और इसका एकमात्र यत्न यही है कि यदि हम बाहर से कुछ ला के घर में न डाल सकें तो घर की पूंजी तो यथासामथ्र्य बाहर न जाने दें; किंतु इसके निमित्त विदेश और विदेशियों का आसरा रखना व्यर्थ है । यदि सब लोग विलायत जा २ कर अथवा यही वैसी शिक्षा पा २ कर भाषा, भेष, भोजन, आचार, विचार आदि बदल २ शुद्ध साहब बन बैठे और इस रीति से अपनी सार्वदेशिक उन्नति भी कर लें ( यद्यपि यह सं नव नहीं है ) तो भी हिंदुस्तान और हिंदुस्तानियों का क्या भला होगा। हां, इंगलिस्तान ही वालों के चेलों की संख्या बढ़ जायगी। इसी प्रकार जो गवर्नमेंट सर्वदा सर्वभावेन केवल रपये पर दृष्टि रखती है, प्रजा चाहे अकाल के मारे जाय चाहे कुरोग के बस प्राण त्यागे, परंतु वह धन के हेतु यहां के मरे जानवरों तक की हड्डियां तक उठा ले जाने में नहीं चूकती, धरती का बल कल नाश होता हो तो आज ही सही लाख हाव २ करो पर स्वार्थ के अनुरोध से मदिरा ऐसे धन, बल, बुद्धि, मान, प्राण नाशक पदार्थ का प्रचार नहीं घटाया चाहती, उससे यह आशा करनी कि हमारी प्रार्थनाओं को सुन के हमें उचित अधिकार दान करके अपनी हानि करेगी, हम नहीं जानते कहां तक फलवती हो सकेगी । अरे बाबा, भला अपने ही हाथ से हो सकता है। अतः सबसे पहिले अपनापन समझो। अपना पेट अपनी करतूत से पालो । अपना तन मन अपने भेष भूषण भाव से अलंकृत करो।