पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३१८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२९६ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली अपनी कौड़ी नाली में गिर पड़े तो भी दांत से धरो। चाहे जैसा दुख सुख, हानि लाभ सहना पड़े पर अपना रंग ढंग न छोसे। अपना अर्थ साधन करने से मुंह न मोड़ो और अपनों को अपना सा बनाने में मन, बचन, कम से अष्ट प्रहर लगे रहो। बस, यही एक काम है जिसका साधन करने से और सब बातें आप से आप सिद्ध हो जायंगी। क्योंकि अगले लोग कह चुके हैं कि 'एकै साधे सब सधै। और यों न कहीं जाने से कुछ होगा न बातें बनाने से कुछ होगा। व्यर्थ की दौड़ धूप और हानि चाहे जितनी कर लीजिए किंतु फल इतना ही होगा कि 'सब साधे सब जाय' । खंः ७, सं० ९ ( १५ अप्रैल ह० सं०७) पेट इन दो अक्षरों की महिमा भी यदि अपरंपार न कहिए तो भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि बहुत बड़ी है । जितने प्राणी और अप्राणी, नाम रूप देवने सुनने में आते हैं सब ब्रह्मांडोदरवर्ती कहलाते हैं और ऐसे २ अनेकानेक ब्रह्मांड ब्रह्मदेव के उदर में स्थान पाते हैं । फिर क्यों न कहिए कि पेट बड़ा पदार्थ है। और बड़े पदार्थ का वर्णन भी बड़ी बात है। अस्मात पेट की बात इतनी बड़ी है कि भगवान श्रीकृष्णचन्द्र तक ने अपना नाम दामोदर प्रकट किया है और इससे सबको यह उपदेश दिया है कि पेट ही वह रस्सी है जिसमें बंधे बिना कोई बच नहीं सकता। धर्म की दृष्टि से देखिये तो समस्त मान्य व्यक्तियों में सर्वोपरि अधिकार माता का होता है, क्योंकि उसने हमें नौ मास पेट में रक्खा है। प्राचीन काल के वीर पुरुषों का इतिहास पढ़िए तो जान पड़ेगा कि अनर्यो ( राक्षसों ) में सहोदर ( रावण के यहां का योद्धा ) और आर्यों में वृकोदर ( भीमसेन ) अपने समय तथा अपने ढंग के एक ही युद्धबला कुशल थे। इधर देवताओं के दर्शन कीजिए तो सबसे पहिले लंबोदर ( गणेशजी ) ही आदिदेव के नाम से स्मृत होते हैं। ममोवृत्ति में कुछ रसिकता की झलक हो तो मनोहारिणी सुंदरियों का अव- लोकन कीजिए ये भी दामोदरी, कृशोदरी आदि नामों से आदर पाती हैं। जब कि ऐसे २ प्रेम प्रतिष्ठा के पात्रों की ख्याति उदर से संबंध रखती है तो साधारणों का तो कहना ही क्या है । सब पेट से ही उत्पन्न होते हैं और यदि आवागमन का सिद्धांत ठीक हो तो अंत समय पेट ही में चले जाते हैं । जो आर्यों की फिलासिफी न रुचती हो तो भी धरती के पेट से अथवा मांसाहारी पशु, पक्षी, कीट, पतंग के पेट से बचाव नहीं है। भब रहा संसार में स्थिति करने का समय, उसमें तो ऐसा कोई बालक वृद्ध, मूर्ख विद्वान, उच्च नीच, धनी दरिद्री है ही नहीं जो दिन रात भाति २ के कर्तव्य, विशेषतः पेट ही