पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३२३

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बात ] ३०१ कहिए, गंगाजलविंदु में गोविंद प्राप्त हो जाते हैं, उन्हें छोड़ के गंगा कहां जा सकती हैं ? हमने माना कि ऐसे धन्यजन्मा इस काल में थोड़े हैं, वरंच सभी काल में थोड़े होते हैं । पर यदि गंगा बही हैं जिन्हें हमारे महारसास्वादन-रसिक कविवृद अपनी हृदय- हारिणी सहृदयहृदयविहारिणी वाणी का बिहारस्थल बनाते हैं तो ऐसों हो के लिए है जो अपने प्रेम प्रभाव से जगदीश्वर तक को मनमाना नाच नवा सकते हैं । भला ऐसों का सान्निध्य छोड़ के गंगामाई किस सुख के लिए कहीं जा सकती हैं ? क्या ले के जायेंगी ? महिमा ? वह तो वास्तव में प्रेम ही की महिमा का नामांतर है । प्रेग न हो तो तीर्थ देवता इत्यादि क्या है परमेश्वर स्वयं कुछ नहीं है । और प्रेम की झलक दिखाई देने पर अकेली गंगा क्या है 'सर्वाणि तीर्थानि वसंति तत्र यत्राच्युतोदार कथाप्रसंगः । हां, अच्युत नामधारी विश्वविहारी का अभाव हो जाय एवं उनके गुण गाने वाले प्रेम मदिरा के मतवाले देवी का तिरोभाव हो जाय तो गंगा का भी अदर्शन युक्तियुक्त हो सकता है । पर ऐसा आर्यावर्त में जन्म पाने वालों अथच आस्तिक कहलाने वालों की समझ में क्या कभी मन में भी नहीं आने का। फिर कोई कैसे यह कह सकता है कि गंगा का महत्व जाता रहेगा । रहा जल, सो भौतिक पदार्थ है, उसे यदि किसी में सामर्थ्य हो तो आठ वर्ष में काहे को आज ही जहां चाहे उठा ले जाय । भक्त जन ‘सब जल गंगा जल भए जब मन आये राम' के अनुसार जो जल पावेंगे उसी को गंगा मान लेंगे। कुछ भी बाह्य पदार्थ न होने पर भी उनकी मनोभूमि में प्रेम लहरी उच्छलित होने पर नेत्र द्वारा आनंदाश्रुममी प्रेय गंगा का प्रवाह कौन रोक सकता है ? फिर हमारे इस कहने में क्या झूठ है कि जब तक ईश्वर, धर्म, प्रेम, प्रेमिक, भारतभूमि आदि नाम बने हैं तब तक गंगा भी अवश्य ही बनी रहेंगी और इस प्रकार पूर्वोक्त दोनों सिद्धांत सत्य हैं, केवल विवाद मिथ्या है। खं० ७ सं० १० ( १५ मई ह० सं० ७) बात यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते। किंतु इन दोनों विषयों में हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है इससे केवल उसी बात के ऊपर दो चार बात लिखते हैं जो हमारे संभाषण के समय मुख से निकल २ के परस्पर हृदयस्थ भाव प्रकाशित करती रहती है : सच पूछिए तो इस बात की भी क्या बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि ( अशरफुल मखलूकात ) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षो केवल थोड़ी सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं