पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३२८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-पंपावली विशेष जिस ग्राम में वा प्रांत में जन्म हो उस का नाम क्यों पड़ा, यदि यह मालूम हो तो भी लिखना वा किस वर्ण के कौन विभाग तथा मत मानते हैं यह भी मालूम हो तो लिखना। हिंद हिंदी और हिंदुस्तानियों का कीर्तिवर्द्धक प्रतापनारायण मिश्र, ब्राह्मण संपादक कानपुर अपवा मैनेजर खड्ग विलास प्रेस, बांकीपुर । (खं ७ सं० १०, १५ मई ह० सं०७) अम है "विद्याधर्मदीपिका' संपादक पंडित पवर श्री चंद्रशेषरमिश्र महोदय मई मास की उक्त पत्रिका में आज्ञा करते हैं कि 'गजल और लावनी आदि के छंद वृजभाषा में ठोक मही बरंच अत्यंत कर्णाहमंद जंचते हैं। हम उन्हें स्मरण दिलाते हैं कि श्री शाह कुन्दनलाल ( महात्मा ललित किशोरी ) और नारायण स्वामी इत्यादि कई सज्जनों की बहुत सी गजलें प्रसिद्ध हैं । नमूने के लिए दो वार का मतला ( टेक ) सुन लीजिए। यथा- सुनिए जसोदा रानी का लाल को बड़ाई । सब लोक लाज याने जमुना में धो बहाई । और--बिनती कुमरि किशोरी मेरी मान मान मान । बिन चूक मान मोसों मती ठान ठान ठान । तथा-देखो कहुँ गलीन में बृषभाननंदिनी । ठुम २ धरै धरनि प चरण गति गयंदिनी। इत्यादि । इसी प्रकार लावनी की। यद्यपि देश के कई प्रांतों में बहुत चर्चा नहीं है तो भी श्रीराधाचरण गोस्वामी, हमारे गुरुवर श्री ललिताप्रसादजी त्रिवेदी ( ललित कवि ) तथा हम और कई एक और कवियों ने बहुत सी लावनी लिखी है। यया-सब गोपवधूटी लकुट मथनियन साधे । गिरि परे न गिरिवर आय कान्ह के कांधे । फिर-अरी बतावै क्यों न हालतू कौन ख्याल में है भटकी, कासों अटकी, लिए मटकी जु फिरै मटकी मटकी । पुनः-दिन २ दीन दसा भारत की अधिक २ अधिकाई है । दीन बंधु बिन, दोन को दीसत कोउ न सहाई हैं । इत्यादि। यह सब वृजभाषा है और किसी कवि ने इन्हें कर्ण कटु नहीं बनलाया । आशा है बाप भी अच्छा न कहें तो बुरा भी न ठहराबैंगे। इसके अतिरिक्त और भी जिन २ छंदों के कहिए उनके नवीन तथा प्राचीन उदाहरण सेवा में निवेदित किये जायं । पर बड़ो बोलो में दोहा चौपाई ल्या लावनी इत्यादि के सिवा सभी छंद स्वादु रहित होते हैं और होंगे । नमूने के लिये ढूंढ़ने नही जाना, कई पुस्तकें छपी हुई मौजूद हैं । फिर यदि