पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३२९

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हरि जैसे को तैसा है] 'बहुत से सुजन' कहते हैं कि 'बिना वृजभाषा के विशुद्ध हिंदी में कविता... ठीक नहीं हो सकती' तो वे क्या पाप करते हैं ? आपने भी अपनी बासंती कविता में माधुर्य रक्षार्थ वृषभाषा का आश्रय लिया है। फिर यदि काव्यरसिक लोग वृजभाषा ही को मधुर कविता के योग्य मानते हैं तो क्या अन्याय है ? हो, यदि बृजभाषा और होती और खड़ी बोली और होतो तो कविता न होने से निश्चय हिंदी का 'भाग्य दोष' अथवा 'कलंक' था; पर जब कि यह बात लाखों कोस नहीं है तो नागरी देवी का यही परम सौभाग्य और महद्यश समझना चाहिए कि वे दुनिया भर की सभ्य भाषाओं से इतनी अधिक श्रेष्ठता रखती हैं कि गद्य के समय और रूप तथा पद्य के अवसर पर अन्य छटा दिखला सकती हैं। फिर हम नहीं जानते वे कैसे 'हिंदी के हितैषी हैं जो अपनी आदरणीया मातृभाषा को सभी काल में उसके स्वभाव के विरुद्ध खड़े ही रखने का हठ करते रहते हैं। संगीतवेत्ता अनेक स्थल पर यदि 'मृदंग' शब्द को 'मृदींग' न कहें तो स्वर को पूर्णता नहीं होती। इसमें व्याकरणियों का शब्दशुद्धि विषयक आग्रह करना व्यर्थ है । यों ही कवि लोग यदि अवसर पड़ने पर माधुर्य एवं लावन्य के अनुरोध से शब्दों में कुछ परिवर्तन न करें तो निरसता कानों और प्रानों में खटकने लगती है। इस बात के माने बिना केवल गद्य लेखकों का तर्क वितर्क उठाना निरा भ्रम है । खं० ७, सं० ११ ( १५ जून ३० सं० ७) हरि जैसे को तैसा है इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईश्वर अनंत है और उस की सभी बातें अनंत हैं । इस रीति से यह सामर्थ्य कभी कहीं किसी को म हुई है न है न हो सकती है कि उस का ज्ञान पूर्ण रूप से प्राप्त कर ले। पर सच्चे विश्वास के साथ उसे जो कोई जिस रीति से मानता है वह अपनी रुचि ही के अनुसार उसके रूप गुण स्वभावादि पाता है क्योंकि सर्वशक्तिमान का अर्थ हो यह है कि किसी प्रकार किसी बात मे मंद न हों। यह तस्व न जानने के कारण बहुधा कुतर्की लोग पूछ बैठते हैं कि ईश्वर सब कुछ कर सकता है तो अपने को मार भी डालने सकता है, अथवा चोरी जारी इत्यादि भी कर करा सकता है कि नहीं। ऐसे प्रष्णों का उत्तर देने में वे लोग अक्षम हो रहते हैं जो यह माने बैठे हैं कि ईश्वर के विषय में जितना कुछ किसो ग्रंथ विशेष में लिखा है उतने ही से इतिश्री है अथवा जिन बातों को बुद्धिमानों ने सांसारिक व्यवहार के निर्वाहार्थ जैसा ठहरा रक्खा है वे ईश्वर के पक्ष में भी वैसी ही हैं। पर जो जानते हैं कि परमेश्वर किसी बंधन में बद्ध नहीं है, केवल प्रेम बंधन ही उस पर प्रभाव डाल सकता है, पर उसके द्वारा वास्तविक स्वतंत्रता में अंतर नहीं पड़ता, वे छुटते ही उत्तर देंगे कि हां