पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३३७

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स्वतंत्रता ] ३१५ सभी स्वतंत्र हैं। संसार में बीसियों धर्म ग्रन्थ एवं सैकड़ों राजनियम सहस्त्रों भांति का भय दिखलाया करते हैं पर कोई काम ऐसा नहीं है जो न होता हो। समर्थी लोग कोई न कोई बहाना गढ़ के मनमाना काम कर लिया करते हैं और असमर्थी यह विचार के जो चाहते हैं नहीं कर उठाते हैं कि यह होगा तो क्या होगा और वह होगा तो क्या होगा । इस रीति से विचार के देखिए तो आवश्यकता ही का नाम स्वतंत्रता है। जिसे जब किसी बात की अत्यावश्यकता होती है और उस की पूर्ति का किसी ओर से आपरा नहीं देख पड़ता तब वह दुनिया मर का संकोच छोड़ के अपना काम निकालने के लिए सभी कुछ कर लेता है। यह स्वतंत्रता नहीं तो क्या है ? और इस की प्राप्ति के लिए चाहिए ही क्या ? केवल देव के भरोसे बैठे रहिए "रात दिन गरदिश में हैं सात आस- मान, हो रहेगा कुछ न कुछ घबरायं क्या"। जब परतंत्रता अपनी पराकाष्ठा को पहुंच जायगी, खाना पीना मरना जीना सभी कुछ पराए हाथ जा पड़ेगा तब आप ही झख मारिएगा और जैसे बनेगा वैसे स्वतंत्रता की खोज कीजिएगा एवं 'जिन दूढा तिन पाइयां' का जीवित उदाहरण बन जाइएगा। पर उस में आप की करतूत कुछ न होगी, वह काल भगवान की हीला कहलावैगी जो अपने चक्र को सदा घुमाया करते हैं और तदनुसार नीचे के आरे ऊपर तथा ऊपर वाले नीचे आप से आप हो जाया करते हैं । आप को यदि स्वतंत्रता प्यारी हो और उस की प्राप्ति का यत्न करना अभीष्ट हो तो इतना ही मात्र कर्तव्य समझिए कि जहां तक हो पराए झगड़े अपने ऊपर न लीजिए केवल अपने काम से काम रखिए एवं अपने काम में यथा सामर्थ्य दूसरों का कम्पर्क न होने दीजिए । इस में यदि कोई अन्याय अथवा बल प्रदर्शन द्वारा हस्तक्षेप करना चाहे तो ईश्वर वा सामयिक प्रभु अथवा किसी सामर्थ्य वाले का साहाय्य ग्रहण कीजिए पर केवल उतना ही जितने में बली विघ्नकर्ता के हाथ से बचाए रहे । यह न होने पावै कि सहायकर्ता की अधीनता में कोई ऐसा दूसरा विषय भी जा पड़े जिसमें विघ्नकारी का हाथ न पड़ा था। पर ऐसा कभी ही कभी हुआ करता है। नित्य के लिये तो केवल इतना ही ध्यान रखना चाहिए कि अपना तथा अपनों का निर्वाह होता रहे। अपने साप दूसरों का तथा दूसरों के साथ अपना कोई प्रयोजन नहीं। कोई कुछ कहे, कहीं कुछ हो, अपने को क्या ? अपनी आत्मा प्रसन्न रहनी चाहिए बस इस पथ का अवलंबन करने से देश काल की दशा के अनुसार स्वतंत्रता के उतने अंश को प्राप्त कर लीजिएगा जितना आप की सी दशा वालों को प्राप्य है और इसी से आप अपनी भली वा बुरी मनोगति के अनुकूल ईप्सित कार्यों की पूर्ति में अब से अधिक सूक्ष्म रहिएगा। नहीं तो कोरी बातें बनाया कीजिए और नाना प्रकार के उपाय करते रहिए पर रहिएगा परतंत्र हो । स्वतंत्रता तो केवल उन्ही के लिये है जो स्वभावतः स्वतंत्र हो अथवा अपने स्वभाव को स्वतंत्र बनाने का पूर्ण उद्योग करें। खं. ७, सं० १२ ( १५ जुलाई ह० सं०७)