पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३२० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली पड़े, पर आप ब्रह्म हैं ! निर्विकार, निराकार, अकर्ता, अभोक्त ब्रह्म हैं ! बेशक ब्रह्म हैं क्योंकि 'खं ब्रह्म' वेद में लिखा है और आप भी आकाश की भांति शून्य हृदय हैं, फिर ब्रह्म होने में क्या संदेह ! ऐसा न होता तो इतना अवश्य सोचते कि वशिष्ठ जी ने श्रीरामचंद्र को और श्रीकृष्णचंद्र जी ने अर्जुन को वह उपदेश उस समय दिए थे जब उन्हें सामयिक कर्तव्यपालन से विमुख देखा था। तात्पर्य यह है कि जिस समय जो काम जिसे अवश्य करणीय हो उस समय वह उसे अवश्यमेव करना चाहिए । पर आर अपने देश, जाति, गृह, कुटुंबादि की दशा देखने और सुधारने के अवसर पर अकर्ता अभोक्ता बनते हैं, फिर क्यों न कहिए कि आप ब्रह्म अर्थात् जड़ है जिसका प्रजाय ब्रज- मूर्ख भी है ! और आप ही के भाई ( अरे राम ! ब्रह्म के भाई भगिनी आदि का ? सो सही पर देश भाई तो भी ) वह हैं जो दूसरे भाइयों में जातिपक्ष, जातीय गौरव, आत्महितादि दिव्य गुण एवं तज्जनित मधुर फल प्रत्यक्ष देखते हैं तो भी सीखने के नाम नहीं लेते एक माहवारी भाई पर, परमेश्वर न करे, कोई आपदा आ पड़े तो सब कोई छ २ कर २ कांव भाव कर करा के जैसे बने वैसे संभाल लें पर कोई पश्चिमोतर देशी किसी दैहिक, दैविक, भौतिक दुरवस्था में फंसा हो तो उसके स्वदेशो 'बहते को बहि जान दे दे धक्के दुइ और' वाला मंत्र यदि न पढ़े तद्यपि इतना अवश्य कहेंगे 'भाई हम क्या करें ? जो जस करै सो तस फल चाखा'। कायस्थ भाई अपने विद्याहीन धनहीन सजाती को मुंशी जी, दीवान जी इत्यादि कह के पुकारेगे । बंगाली भाई अपने देशवासो को चटरजी महाशाय, बनुरजी महाशाय कहेंगे। पर हमारे हिंदू दास अपने लोगों को यदि मिसिर वा सुकुलवा आदि न बनावैगे तो भी गंगाप्रसाद को गंयू काका और मूल- चंद को मूल्लू दादा को पदवी दिए बिना न मानेंगे । एक तमाखू वाले अथवा बिसाती की दुकान पर जा के देखिए तो छोटे से एक दरे में दस पांच चिलमों, दो तीन मट्टी के पिंडों और थोड़ी सी खानी पीनी तमाखू तथा पंद्रह बोस दियासलाई बकसों, सूत की लटाइयों आदि के सिवा अधिक बिभूति न देख पड़ेगी। वे वने वाला भी फटी मैली सुय. निया वा नील का अंगौछा पहिने बैठा होगा पर साइनबोर्ड पढ़िए पढ़िए तो शेख हाजी मुहम्मद कल्लन तम्बाकू फरोश' अवश्य लिखा पाइएगा किंतु उस के पड़ोस हा किसी बनिया राम की दुकान पर दृष्टि कीजिए तो भीतर कम से कम पाव भर केसर, सेर भर छोटी इलायची, पसेरी भर कपूर निकलेगा जो तमाखू और सूई पेचक से दसगुने बिसगुने दामों का है पर नाम वाली तखती पर 'छ वल्द भग्गी पसारी' किसी मेले ठेले वा नाच वाच में इन छक्क और उन कल्लन को कोई देखे तो काख विश्वा यही जानेगा कि वह कोई अमीर, रईस, नवाब के संबंधी हैं और यह कोई डंडिदार वा पल्लेदार होगा! यही नहीं कि अपनी और अपनायत वालों की प्रतिष्ठा ही करने में बछिया के बाबा हों, नहीं, अपने तथा आत्मीयों की स्वास्थ्य रक्षा में भी प्रक्षाचक्षु हैं । स्त्री के पास गहना दो चार सौ का होगा पर उस की थाली पर घी शायद पोंछे पाछे घेला पैसा भर निकल आवै । लड़के के ग्याह में कम से कम सौ रुपए की आवशवाजी