पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४५

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रसिक समाज ] ३२१ द्वारा प्रकाशित पुस्तकें जो लोग लेना चाहेंगे उन्हें उनका मूल्य देना होगा जिसका परि. माण वर्ष भर में एक रुपए से अधिक न होगा। यों अपने उत्साह से जो सज्जन तन, मन, धन अथवा वचन द्वारा सभा को सहायता करना चाहें वा पुस्तकों के अधिक प्रचार में योग देना चाहं वे दे सकते हैं। इस के लिए उन का गुण अवश्य माना जायगा। किंतु बंधन वाली बात कोई नहीं है । यदि इतने पर भी हमारे देशहितैषीगण जी खोल के सभा का साथ न दें तो लाचारी है। हम तो चाहते हैं कि नगर २ ग्राम २ में ऐसी सभाएं संस्थापित हों और प्रत्येक सभा समस्त सभाओं को अपना ही अंग समझे । क्योंकि थोड़े व्यय और थोड़े से परिश्रम के द्वारा हंसते खेलते हुए साधारण जन समुदाय में सहृदयता के लाने का यह बहुत अच्छा उपाय है जिस से हिंदुओं में हिंदी की रचि सहज रीति से बढ़ सकती है जो हिंद की वास्तविक उन्नति के लिए अत्यंत प्रयोजनीय है । क्या हमारे आर्य कवि एवं सुलेखक तथा संपादक वर्ग इधर ध्यान देंगे? कानपुर में इस सभा का आविर्भाव बहुत थोड़े दिन से हुआ है । पहिला अधिवेशन श्रावण कृष्ण १: रविवार को हुआ था जिस में केवल सात सभासद और बहुत थोड़े से दर्शक उपस्थित थे और स्वल्पारंभ को उत्तम समझ कर लोगों के सुभीते के लिए पंद्रह दिन में एक बार अर्थात् एक इतकार छोड़ के दूसरे इतवार को सभ्यगण का समागम निश्चित हमा था। पर दूसरे ही अधिवेशन में संतोषदायक उत्साह देखने में आया एवं दिन पर दिन परमेश्वर की दया से वृद्धि होती जाती है जिससे आशा होती है कि यदि नगरांतरवासी सहृदयों ने भी योग दिया ( अपना समझेगे तो अवश्यमेव देंगे ) और कोई विघ्न न आ पड़ा तो थोड़े ही दिन बहुत कुछ हो रहेगा। ___ इसके सभासद एक श्रमासिक पुस्तक भी प्रकाश करना चाहते हैं जिस में कविता अधिक रहेगी। क्योंकि गद्य का कार्य कई एक पत्र उत्तमता से कर हो रहे हैं। अतः अधिक आवश्यकता इसी की है । सो 'रसिक बाटिका' नामक पुस्तक की पहिली क्यारी ( अंक ) छप भी चुकी है । मूल्य चार आना है। यदि हिंदी के प्रेमियों ने इसे सोचने में उत्साह दिखलाया तो बहुत शीघ्र इसके मधुर फलों से भारत के सर्वांग को वह पुष्टि प्राप्त होगी जिस की बहुत से सव्यक्तियों को उत्कंठा है। जो रसिक महोदय रसिक- बाटिका की सैर करना अथवा रसिक समाज से संबंध रखना चाहें उन्हें सेक्रेटरी रसिक- समाज कानपुर के नाम कृपापत्र भेजना चाहिए । खं०८, सं० २.३ (३० सितंबर-अक्टूबर ह. सं०७)