पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४६

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छै! छ!! छ !!! हुम्त ! मनहूस कही का! वाह रे तेरी छ ! हमारी के काहे की, तेरी हो । जान न बूमें कठौता ले के जूझै। कुछ समझता भी है हम क्या कहते हैं कि मुंही पकड़ने दौड़ता है ? सब समझते हैं । बस, चुप रहो! समझते हो! अपना सिर ! समझते हैं ! भला बता तो हम क्या कहेंगे? वाह! हम कोई अंतरजामी है ? हा अंदाज से जानते हैं, संख्यातार लिखते २ दिमाग में गरमी चढ़ गई है इसी से बार २ की गिनती याद आती है। फिर ! इसी में क्या बुराई है ? एक रात नाच देखने पर तो दूसरे दिन सोते भागते, ऊंघते पूंछते कानों में छुन २ की सो आवाज गूंजती रहती है। हम महीनों से छ छ छ सुन रहे हैं। फिर हमारे मुंह से कैसे न निकले। महीनों से ! यह पहेली सी क्या कह गए ? भई सचमुच हम न समझे थे। हमारी बान में तो छ रही है जो पांच के पीछे औ सात के पहिले गिनती में आया करते हैं । सो सभी गनते हैं कि नाद में छ राग होते हैं, वेद में छ अंग होते हैं, विद्या में छ शान होते हैं, देवताओं के स्वामि कातिकजी के छ मुख होते हैं, पितरों में छपिंडाधि- कारी होते हैं, कान्यकुब्जों में छ घर होते हैं । तुम्हारी ल्योंही पर छ गुहे होते हैं ! हें ! चले हैं पंडिताई छौंकने ! अबे जिन्हें तू कहता है, होते हैं, उन्हें कहना चाहिए, होते थे। अब पुराने जमाने की सड़ी बातों पर हमारे काले साहब सोक पांव होते हैं इससे समझ रख कि देवता पितर, वेद सवेद सब कहने भर को होते हवाते हैं । सो भी यकीन है कि कुछ दिन में नई रोशनी वाले बंप की बू से भी चुरुट की चिराइंध से भागमूग जायंगे । तब बस चारों तरफ देख लेना कि प्रातःकाल खटिया से उठते ही रकाबी पर छ अंडे होते हैं, सांझ को पूरी बोतल भर में केवल छ होस होते हैं, स्नान के समय बकस में साबुन के छ चकत्ते होते हैं, सैर के वक्त कोट में छ बटन होते हैं, बातें करने में अंग अंग से छ मोशन होते हैं, लेट रहने पर हाथ मुंह चाटने को छै कुत्ते होते हैं ! अब समझे ? कुछ भी नहीं समझे ! परमेश्वर न समझाव ! तुम्ही ने समझ के क्या किया ? अब और क्या करें ? तुम ऐसों को बात २ में बना छोड़ते हैं। इतना थोड़ा हम क्या कहते थे तुम ले दौड़े कहां। इसी से तो कहते हैं कि यारों की बातों में टोंका न कर । न जाने किस तरंग में क्या कह उठते हैं । अच्छा बाबा! हारे। पर जी में मात्र तो बतला दो कि आप के छ का क्या मतलब है।