पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४९

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छ! छ !! छ !!! ] ३२७ को नाश मंतव्य है । क्योंकि रामलीला में रावण की ® का शब्द गंजने लगता है और घरत पूर्णिमा तक बना रहता है। फिर उसी दिन से जुवा का आरंभ होता है तब रावण का नाम जाता रहता है। किंतु छै छै की चर्चा बनी रहती है। यहां तक कि दिवाली के दो चार दिन इधर उधर छै छै के सिवा कुछ सुनी नहीं पड़ता । खास करके जहां के हाकिम प्रजा के त्योहारों के आमोद-प्रमोद के द्वेष न हुए यहाँ तो गली गली घर घर जन जन को छै छै की सनक सी चढ़ जाता है ! छै ! छै ! यह छ ! आ तो बा छै! सोरही में तो छ ! नवकी मूठ में तो छ ! फिरकी में तो छ ! क्या गरीब, क्या अमीर, क्या बच्चा, क्या बुड्ढा, क्या पुरुष, क्या स्त्री सभी के मुंह पर दिन रात छै छै छ छै बसो रहती है फिर दिवाली का मौसम टल जाने पर छै का प्रावल्य यद्यपि जाता रहता है किंतु दिठोनी इकादशी को हारे जुआरियों का अपील अर्थात् फिर जीतने की आशा पर खेल और कतकी को हाईकोर्ट अर्थात् अंतिम निर्धार जब तक नही हो जाता तब तक छै छ की छै नहीं होती। यद्यपि श्रेष्ट द्यूतकारो के पवित्र मंदिरों में उसका बारहों मास बिहार होता रहता है पर जन समुदाय का अधिकांश इन्हीं दिनों छ छ में विशेष रूप से मस्त रहता है। इस से हमें भी इसका थोड़ा बहुत जाप कर लेना चाहिए । यदि बुराई है तो उनके लिए है जो लत्ती हैं और घर के बनने बिगड़ने का ध्यान नहीं रखते । पर त्योहार मनाना तथा पुरखो की रीति का पालन कर लेना कोई ऐब नहीं है। गृह कुटुंबादि के आवश्यक व्यय से उबरने पर थोड़ा सा परिमित धन इष्ट मित्रों की प्रसन्नता संपादनार्थ इस बहाने भी उठ गया तो क्या हानि है ? विलायती चीजों के बर्ताव से और सड़ी सड़ी बातों के लिए कचहरी दौड़ने से लाखों रुपया विदेश को चला जाता है, उसका तो कोई ध्यान नहीं देता, पर होली, दिवाली में थोड़ा सा मन बहलाने में पाप है ! और उसी के लिए देशभाइयों को हंसना धर्म की दुम है ! अच्छा बाबा, हम जो कुछ हैं वही बने रहेगे, किसी को बुरा लगे तो अपने कान बंद कर ले । पर हमें दिवाली के एक दिन पहिले एक दिन पीछे, यह कहने से न रोके कि छ छै छ! अच्छा साहब छ सही, पर यह तो कहिए काहे को छ ? हाँ यह मन की बात पूछी है तो हम भी क्यों छिपा, कहीं डालें न ! वर्षा के कारण अंतरिक्षस्थ गर्द गुवार की छ। पर जिन घरों के किसी भाग मे तारकोल चुण्ड दिया जाय उनके आस पास के आने जाने वालों की मस्तिष्क संबंधिनी शांति की छ। दिवाली का दिया वाटने से मक्खी मच्छर कीड़े पंतगों की छ ! सरसों का तेल और मातशबाजी का गंधक जलने से मलेरियाउत्पादक वासुदोष की छ! किंतु नए शौकीनों के द्वारा मट्टी का तेल जलने से नेत्र ज्योति और कूवते दिमागे की छै! सब राहें कुल जाने से देश देशांतर में गमनागमन करने गले व्यापारियों के हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने को छ ! विशेषतः हलवाई और कुम्हारों तथा ठठेरों की बेकदरी की शिकायत की छ ! लक्ष्मी पूजा के द्वारा पुरोहितों को बेरोजगारी और यजमानी के पाप की छ !