पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५१

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पुलिस की निंदा क्यों की जाती है] ३२९ कठा अन्न, कभी तिषि त्योहार की त्योहारी, कभी फटा पुराना कपड़ा जूता इत्यादि मिलता रहता है और आवश्यकता पड़ने पर रुपया घेली यों भी दे दी जाती है। इधर स्त्रियां भी दो चार घर में चौका बरतन करके कुछ ले आती हैं। इससे साधारण रीति से गरीबामऊ निवाह होता रहता है। पर चौकीदार की तनरूगह चार रुपया और कांस्टेबिल की पांच रुपया बंधी है, ऊपर से प्राप्ति होने का कोई उचित रास्ता नहीं है, बरंच उरदी साफा लाठी जूता आदि के दाम कटते रहते हैं। सो भी यदि वे अपने सुभीते से खरीदने पावै तो कुछ सुभीते में रहें, किंतु वहाँ ठेकेदार के सुभीते से सुभीता है। इससे अधिक नहीं तो एक के ठौर सवा तो अवश्य ही उठता है। इस रीति से पूरा वेतन भी नहीं हाथ आता और काल कराल का यह हाल है कि चार-पांच रुपया महीना एक मनुष्य के केवल सामान्य भोजनाच्छादन को चाहिए । स्त्रियां हमारे यहां की प्रायः कोई धंधा करती नहीं हैं। उस का सारा भार पुरुषों हो पर रहता है । और ऐसे पुरुष शायद सो पीछे पांव भी न होंगे जिनके आगे पीछे कोई न हो। प्रत्येक पुरुष को अपनी माता, भगिनी, स्त्री आदि का भरण पोषण केवल अपनी कमाई से करना पड़ता है। हम ने माना कि सब को सब चिंता न हो तथापि कम से कम एक स्त्री का पालन तो सभी के सिर रहता है । यदि कोई संबंधिनी न होगी तो भी प्राकृतिक नियम पालनार्थ कोई स्त्री ऐसी ही होगी जिस का पूरा बोझ नहीं तो आधा ही भार उठाना पड़ता हो। अब विचारने का स्थल है कि पौने चार अथवा पौने पांच रुपए में दो प्राणियों का निर्वाह कैसे हो सकता है जब तक कुछ और मिलने का सहारा न हो। सो यहां तरक्की का आसरा मकहिमे लाने और अफसरों को प्रसन्न रखने पर निर्भर ठहरा । काम कम से कम दश घंटे करना चाहिए। ऊपर से अवसर पड़ने पर न दिन छुट्टी न रात छुट्टी। दैवयोग से कोई दैहिक दैविक आपदा आ लगे तो जै दिन काम न करें तै दिन पूरी तनख्वाह एवजीदार को दें। इससे दूसरा धंधा करने का ब्योंत नहीं । काम चलाने भर को पढ़े ही होते अथवा घर में खेती किसानी का और किसी बृत्ति का सुभीता होता तो विदेश में आके इतनी छोटी तनख्वाह पर नौकरी ही क्यों करते ? फिर भला बिचारे करें तो क्या करें ? अपने उच्चाधिकारियों को खुश न रखें तो तरक्की कैसी नौकरी ही जाती रहे । और उन का खुश रहना तभी संभव है जब दूसरे चौथे एक आधा मुकद्दिमा आता रहे और सबूते कामिल मिलता रहे। क्योंकि इसी में अफसर को मुस्तैदी की तारीफ और मातहत की भाग्यमानी है । इस दशा में सर्वसाधा- रण को प्रसन्न करें कि अपनी उम्मेद की जड़ सीचे ? हाकिम और रईयत दोनों का खुश रखना बड़े भारी नीतिज्ञ का काम है न कि चार पान रुपये के पियादे का। और गृहस्थी के भ्रमजाल वह हैं जो बड़े २ धनवानों, विद्वानों और बुद्धिमानों का मन डावां- डोल कर देते हैं यह विचारे क्या हैं । तथा दुनिया का कायदा यह है कि सीधी तरह एक पैसा मांगो तो न मिले पर कोई डर वा लालच दिखा के आडम्बर करके लेना आता हो तो एक के स्थान पर चार मिल जायं। एवं आवश्यकता जब दबातो है तब न्याय