पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३३२ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली लायक विश्वास कहाँ ? पाठक महाशय ! इसमें कोई भी संदेह नहीं है। यदि हमारे कहने से निश्चय न आवै सो कुछ दिन स्वयं अभ्यास कर के परीक्षा ले लीजिए तो विश्वास हो जायगा कि विश्वास में बड़ी भारी शक्ति है। विश्वासी के लिए पर्वत का हटा देना तो एक छोटी सी खेलुल्ली है। वह यदि चाहे तो पहाड़ क्या यावजगत वरंच जगतकर्ता को स्वेच्छानुसार संचालित कर सकता है। पर होना चाहिए विश्वासी ! सच्चे विश्वास से पूर्ण विश्वासी! हां, यदि किसी कपटी एवं स्वार्थाव व्यक्ति ने आपके साथ विश्वासघात किया हो अथवा आप ने किसी पुरुष को कुछ का कुछ समझने के कारण कभी धोखा खाया हो तो कह सकते हैं कि विश्वास कोई चीज नहीं है वा उस के करने से कुछ नहीं होता। पर निश्चय रखिए कि ऐसा अवसर पड़ जाने में विश्वास का दोष नहीं है। वह दोष उस विश्वासघाती नराधम का है अथवा आप की बुद्धि का है। क्योंकि संसार में जैसे सचमुच के सजन बहुत थोड़े हैं वैसे ही शुद्ध दुर्जन भी बहुत नहीं हैं । और हमारी तुम्हारी बुद्धि जैसे सब बातों का ठीक २ भेद नही पा जाती वैसे ही सदा सब ठौर धोखा भी नहीं ही खाया करती। इस सिद्धांत के अनुसार जीवनकाल में दो चार बार धोखा खा जाना वा धोखा दे देना असंभव नहीं है। किंतु इस से यह सिद्धांत कभी न निकाल लेना चाहिए कि जिन बातों को हमारे लक्षावधि महापुरुषों ने तमा विदेशीय महात्माओं ने बारम्बार अच्छा कहा है वे वस्तुतः अच्छी नहीं हैं । विश्वास को महिमा वेद शास्त्र पुराण बाइबिल कुरान जहां देखिए वहां मिलेगी। फिर कोई सिद्ध कर सकता है कि वह ग्रहणीय गुण नहीं है ? यदि दैवयोग से आप ने कभी किसी ऐसे ही भारी प्रवं वन के द्वारा कष्ट वा हानि सही हो कि हमारे कथन का विश्वास ही करना न चाहते हों तो भी इतना समझ लीजिए कि संसार मे किसी पुरुष वा पदार्थ की गति सदा निश्चित रूप में नहीं रही। कभी २ बहुत सोचे समझे विषयों तथा भली भांति जाने बूझे लोगों से भी धोखा खाने में आ जाता है। अतः दुनिया और दुनिया- दारों पर विश्वास करते हुए जी हिचकिचावै तो आश्चर्य नहीं है। किंतु ऐसी दशा में भी विश्वास के स्वाद से वंचित न रह के ईश्वर पर विश्वास जमाने का अभ्यास करना उचित है। क्योंकि उस को किसी बात में किसी आस्तिक के मतानुसार कभी गड़बड़ नहीं पड़ता। यहा हम यह कहना नहीं चाहते कि उसे क्या समझ कर किस रीति से विश्वास कर्तव्य है। क्योंकि हमारे सिद्धांत में उस अमंत की सभी बातें अनंत हैं और सर्वथा स्वतंत्र तथा सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी आदि नामों ही से सिद्ध है कि सभी रीति से सभी ठौर पर सभी काल में हमें उस की प्राप्ति हमारी ही मनोगति के अनुसार हो सकती है । विशेषतः वह स्वयं विश्वासमय एवं केवल विश्वास हो का विषय है । अस्मात् विश्वास करने से हम उसे चौराहे को इंट में भी प्रत्यक्ष रूप से पा सकते हैं मोर यों खाली खाली जन्म भर अष्टांग योग के द्वारा भी सपने में झूठमूठ भी उसकी छांह देख पाना असंभव है। सिद्धांत यह कि अपनी रुचि के अनुसार सच्चे जी से उसके कोई बन जाइए, उसे अपना जो जी चाहे वह सचमुच और हड़ता के साथ बना लीजिए तो स्पष्ट देख लीजिएगा कि विश्वास में कैसा गुण, कसो शक्ति, कसा आनंद है कि जी ही