पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५७

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उन्नति की धूम ] ३३५ व्यतीत करने में समझते थे वह सुभीता भी इस काल में घर बैठे प्राप्त है। रुपया पैसा लाइस्यंस टैक्स इनकमटैक्स चुंगी चंदा विदेशी चमकीली चीजों आदि पर निछावर हो गया और बचा खुचा दिन दूनी रात चौगुनी चाल से हो रहा है। अतः यह कहना भी अत्युक्ति न होगा कि जिस धन को अगले लोग यत्नपूर्वक छोड़ते थे वह इहकालिक लोगों को स्वयं सहजतया छोड़े भागता है अथच ऐसी दशा में असंभव नहीं है जो स्त्री पुत्रादि भी आप से आप छूट जायं क्योंकि पेट सबको प्यारा होता है और अब वह समय रहा नहीं है कि एक कमाए और चार खायें, इसके अतिरिक्त बन भी ढूंढने नहीं जाना। अभी वह लोग सैकड़ों नहीं सहस्रों जीते हैं जो देख चुके हैं कि लखनऊ मिरजापुर फर्रुखाबंद आदि नगरों में थोड़े ही दिन हुए कि आठों पहर कंचन बरसता था और बड़ी २दूर के लोग आ आ कर सहस्रों कमा ले जाते थे किंतु अब वहाँ जिस बाजार को देखिए भीय २ होती है। सहस्त्रों निवासी घर छोड़ २ नगरान्तर को चल दिए और सैकड़ों घर ऐसे दिखाई देते हैं जिन्हें देख के बोध होता है कि इनमें कोई बहु कुटुंबी महाधनी निवास करते थे पर आज अंगनाई में घास उगती है और कोए कुत्ते रहते है । ऐमे लयमों से कौन न कहेगा कि परमेश्वर ने चाहा तो कुछ ही दिनों मे निरजन बन अलभ्य न रहेंगे, फिर क्या यह उन्नति नहीं है ? सच पूछिए तो सतयुग त्रेता वाले लोग जिस उन्नति के लिये यत्नवान रहते थे वह पूर्ण रूप से अभी प्राप्त हुई है ! हां यदि कलियुग के प्रभाव से आप शारीरिक सुख एवं सांसारिक सुविधा ही को उन्नति का लक्षण मानते हों तो भी आगे जिन दामों में गजी मिलली थी उन में आज तनजेब ले लीजिए । जहाँ जाने में घर वालों से सदा के लिये बिदा मांगनी पड़ती थी वहाँ सप्ताह दो सप्ताह मे हो के लौट आइए । जिन के समाचार मंगाने में दूत और धन की आवश्यकता होती थी उन से एक पैसे के पोस्टकार्ड में घर बैठे बातें कर लीजिए । जो पुस्तक सौ पचास रुपया लगाने पर भी बरसों में प्राप्त होती थी, सो भी अचिक्कण और मलीन कागज पर फोकी स्याही की लिखी, कहीं महावर कही हरताल से रंगी, कही कटी कहीं फटी, अशुद्ध फशुद्ध विहंगम वही आज आठ दस रुपए में उत्तम से उत्तम छपी हुई मिल सकती है, सो भी जब चाहो तब ! ऐसे २ अनेकानेक प्रत्यक्ष प्रमाण है जिन के कारण हम क्या हैं हमारे गुरू गौरांगदेव भी सैकड़ों मुख से कह रहे हैं कि इंडिया ने वह उन्नति की है जो कभी देखने में क्या सुनने में भी नहीं आई । यदि हमारी न मानो अपने ही शास्त्रों का हठ करो तो महात्मा चाणक्य आशा करते हैं- यथा राजा तथा प्रजा- इस वाक्य को ध्यान में रख के हमारे राजदेश इंग्लैंड की दशा का विचार करो कि दो ढाई सौ वर्ष पहिले कैसी थी तब निश्चय हो जायगा कि बेशक आगे के देखे सभी बातों में उन्नति की है। फिर भला जब राजदेश और राजजाति उन्नति करेगी तो प्रजास्थान और प्रजावर्ग की उन्नति में क्या सदेह रहेगा? अस्मात् सब प्रकार मान ही लेना चाहिए कि निस्संदेह हिंदुस्तान की उन्नति है। ऐसी दशा में उन्नति २ चिल्लाना वा उस के लिये धावमान रहना निरा पिष्टपेषण चवित चर्वण और "कनियाँ लरिका