पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३३८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली के काम चला लेते हैं, यों ही हमारे बंगाली तथा गुजराती भाई म से लिख लेते हैं और कोई हानि नहीं भी होती, किंतु अंगरेजी के रसिक यदि शुद्ध उच्चारण न होने का दोष लगा तो एक रीति से लगा सकते हैं, क्योकि यह अक्षर व और ब दोगों से कुछ विलक्षणता के साथ ऊपर वाले दांतों को नीचे के ओंठ में लगा के बोला जाता है । इसकी थोड़ी सी कसर निकाल डालने के लिये हमारी समझ में यदि ब के नीचे बिंदु लगाने की प्रथा कर ली जाय तो क्या बुराई है ? यों ही फारसी में एक अक्षर जे j है 'जिस का उच्चारण श के स्थान से होता है। अंगरेजी में भी प्लेजर Pleasure आदि शब्द इसी जकार से उच्चरित होते हैं । इस के शुद्धोच्चारण के हेतु यदि "ज" के नीचे तीन बिंदु लगाने की रीति नियत कर ली जाय तो बस दुनिया भर के शब्दों को शुद्ध लिख पढ़ लेने में रत्ती भर कसर न रहेगी, पर यदि हमारे भाषावेत्तागण मंजूर करें। खं० ८, सं० ६ ( १५ जनवरी ह० सं०८) भेड़ियाधसान भेडियाधसान अथवा भेड़ चाल का अर्थ सभी जानते हैं कि जब भेंड़ों का समूह चलता है तो एक के पीछे एक एक के पीछे एक पंक्तिबद्ध होकर चलता है और सब के आगे चलने वाली मेंडों का अनुगमन इतनी निश्चिन्तता के साथ आंखें मीचे शिर झुकाए हुए करता है कि यदि वे कुआं में गिर पड़ें तो यह भी सब भरभरा के गिर पड़ें। पर यह बात कहने ही सुनने भर को है किसी ने कभी भेड़ों के किसी झुंड को कुएं में गिरते देखा न होगा। क्योंकि प्रत्येक समूह के साथ एक वा कई गड़रिए अवश्य रहते हैं जो उन्हें नष्ट मार्ग से बचाए हुए सीधे निष्कंटक पथ से चलाते रहे हैं और समूह के चलने के लिए रास्ता भी ऐसा ही लंबा चौड़ा और बराबर होता है जिसमें कुआं खाता आदि न हो। इस रीति से यदि गड़रिया कुछ काल के लिए किसी कार्यवश अलग भी हो जाय तो आगे वालियों का पतन संभव नहीं होता फिर उन के पीछे चलने वाली क्यों गिरने लगी? हां जो भेड़ें अपने निज संचालक का बोल नहीं पहिचानती, जिस ने टिटकारा भर दी उसी की इच्छानुसार चल पड़ती हैं उन का गिर पड़ना संभव है क्योंकि दूसरों को न उन को ममता होती है न उन के नष्ट होने से कुछ हानि होती है चाहे जिधर हांक दिया। अथवा जो कोई गई वही भेड़ अपने समुदाय को छोड़ भागती है वह नाश हो सकती है। सारांश यह कि भेड़ों के चलने की यह रीति यदि अनुचितता को न प्राप्त हो तो प्रायः नाश का हेतु नही होती वरंच प्रकृति के अनुकूल होने से बुद्धिमानों को उपदेशदायिनी कही जा सकती है। ईश्वर ने प्रत्येक जीव निर्जीव में एक वा मनेक ऐसे गुण स्थापित कर दिए हैं जिन के द्वारा हमें कुछ न कुछ सुशिक्षा