पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६३

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भेड़ियाधसान ] ही जीभ गिरी पड़ती हो तो उत्तम से उत्तम मांस तथा केसर कस्तूरी की मदिरा बनवा सकते हैं । जो कांच के गिलास में पानी नहीं पीते वे क्या नहीं जीते ? नहीं मट्टी के कुल्हड़ का सोंधा और ठंढा बरंच फूल पीतल तथा चांदी सोने के पात्रों का जलपान कर सकते हैं जो लोग गंधैले मट्टी के तेल का लैम्प जला के आंखों की ज्योति और मस्तिष्क शक्ति की धोति को मट्टी में नही मिलाते वे अंधेरे में नहीं रहते बरंच दीपक और हांडी हांडी मिरदंगी आदि में सरसों तथा अरंड का नेत्र प्रभाप्रसारक तेल अथवा अगर की बत्ती प्रज्वलित करके सुहावमा प्रकाश लाभ कर सकते हैं। जो लोग मारकीन व गिरंट नहीं पहनते वे शीतोष्ण वायु का वेग सहन करके ठिठुर अथवा झोस नहीं जाते बरंच गाढ़ा और मुरशिदाबादी गर्द तथा कमख्वाब से शरीर को रक्षा एवं शोभा संपादन कर सकते हैं । जो लोग अंगरेजी नहीं पढ़ते वे जीविका से वंचित नहीं रहते बरंच नागरी और संस्कृत का अध्ययन कर के लड़के पढ़ाने वा कथा बांचने के द्वारा भली भांति पुजा सकते हैं। जो लोग नौकरी के लिए मेरी तेरी सिफारिश उठवाते और बंगलों २ को ठोकरें खाते फिरना नहीं चाहते वे हाथ की कारीगरी वा छोटा मोटा धंधा कर के निर्वाह भर को कमा सकते हैं। बरंच बाब लोग जहां सुन पाते हैं कि जगह खाली है वहां मंहगी के से मजदूर एक के ठौर पर अनेक दौड़ पड़ते हैं किन्तु मजदूर बहुधा ढूंढे नहीं मिलते । कहां तक कहिए यदि अपनी चाल ढाल के काल बुद्धि के कंगाल सब के सब बिलायत जा २ के बैरिस्टर हो अपना और पूर्णतया अने रंग ढंग आ फैलावें तो उन के लिए मुअक्किल न जाने कहां से आवै क्योंकि सारा देश उन की समझ के अनुसार सुधर जाय और निस्संदेह उनका भित्तल्ला उधड़ जाय । योंही सव के सब सी० एस० आई० राजा नौवाब बन जायं तो भी उन्हें नौकर मिलना मुश्किल हो जाय क्योंकि उन्नति का लक्षण ही यह है कि नाई की बरात में सब ठाकुर ही ठाकुर ! किंतु परमेश्वर करे पुरानी चाल भले प्रकार से सब को प्यारी लगने लगे और ब्राह्मण मात्र वेद शास्त्र पुराण इतिहास नीति के पठन पाठन में प्रीति करें । क्षत्रिय मात्र विद्या और वीरता के नाम पर मरें। वैश्य देश देशांतर मे गमनागमन करके कृपि वाणिज्यादि का प्रण धरै। शूद्र लोग बाबू बनने का चाव छोड़ सरल भाव से वर्णत्रयी की सेवा और अपनी २ जाति परम्परा के अनुसार नाना प्रकार का शिल्प संभार करके देशभाइयों के प्रयोजनीय पदाथों का अभाव हरें तो देख लीजिए कैसा सुख सौभाग्य सौदर्य बरसता है। फिर कोई किस मुंह से हमारे भेड़ियाधसान की निन्दा कर सकता है । भेडियाधसान तो जब यहां पूर्णरूप से फैला हुआ था तब किसी को कोई दुख दरिद्र था ही नहीं। जब साधारण जन समूह मात्र अपने २ पुरुषों की चाल पर पूरी रीति से चलता था तब यहां सुख संपदा का इतना अजीणं था कि लोग राज पाट छोड़ २ कर वनों में जा बैठते थे और ऊपरी सुखों को तुच्छ समझ के ब्रह्मानन्द परमानन्द प्रेमानन्द लाभ करने में यत्नवान होते थे। यहां के एक २ ब्राह्मण से सारा संसार शिक्षा पाने को तरसता था। एक २ क्षत्रिय से ब्रह्माण्ड थर २ कांपता था। विदेशी सम्राट कन्या दान करने में अपनी बड़ाई और बल की अधिकाई समझते थे। एक २ वैश्य धन पर आज भी बड़े २ परदेशी जार लार टपकाते