पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६८

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छल (१) पुराने लोगों ने इस गुण को बुरा बतलाया है पर विचार कर देखिए तो जब कि लकार वर्णमाला भर का अमृत है, जिस शब्द में यह आता है उसे ललित लावन्यमय प्रलोभन पूर्ण बना देता है, संस्कृत मे जयदेव जी का गीतगोविन्द सब से सलोना समझा जाता है, क्यों ? जहां बहुत से कारण हैं वहां एक यह भी है कि उसमें यह अक्षर बहु- तायत के साथ लगाया गया है-'ललित लवंग लता परिशोलन कोमल मलय समीरे' इत्यादि, यों ही भाषा कविता में भी,--लामे लकुचन लगि लम कि लुनाई लिए लतिका लवंगनि की लहकि लहकि उठे' इत्यादि पद बहुत ही सुहावने समझे जाते हैं । यही नहीं अंग्रेजी में लव Love, लेही Lady, लैंड Lad, फारसी में लबे लाली लही लअब गुले लाला इत्यादि शब्द जीवित प्रमाण देते हैं कि यह अक्षर मनोहारिता का मूल है,तो फिर जिस शब्द में एक के स्थान पर छ: लकार हो वुह त्याज्य वा अग्राह्य क्योंकर हो सकता है ? अग्राह्य कहने वाले बनवासी उदासी मुनि लोग थे । उनको दृष्टि में सारा संसार ही बरंच स्वर्ग सुख भी तुच्छ था। इसी से सभी मजेदार बातों को त्याने योग्य समझ बैठते थे और उनकी सब महाराजा लोग प्रतिष्ठा करते थे अतः उनके बचन अथवा लेख पर आक्षेप करने में कोई साहसमान न होता था। इसी से जो चाहा लिख दिया, नहीं तो सुरापान, सुन्दरी समागम, धूतक्रीडा, मांसभोजन जितनी बातें उन्होंने निषिद्ध ठहराई हैं सब की सब प्रत्यक्ष और तत्क्षण मानन्द देने वाली हैं। यहां तक कि जिन्हें इनका स्वादु पड़ जाता है वे न लोकनिंदा को डरते हैं न धन हानि की चिता करते हैं न राजदंड को भटकते हैं न परलोक भय से अटकते हैं। अस्मात् इनके स्वादिष्ट होने के लिए प्रमाण ढंढने की आवश्यकता नही है। जिस अनुभवी से पूछोगे वह देगा कि "गरचे एक तरह की बला है इश्क । तो भी देता अजब मजा है इश्क ।" यदि कोई शास्त्रार्थ का अभि. मानी यह सिद्ध कर दे कि इन कामों का परिणाम अच्छा नहीं है तो भी हम पूछेगे परिणाम का क्या ठिकाना । वह तो सभी बातों का यों ही हुवा करता है । ईश्वरभक्ति, देशभक्ति और सद्गुणभक्ति का परिणाम यह है कि मनुष्य घर बाहर के काम का न रह के दिन रात अपनी कल्पित माशा ही में रक्त सुखाया करता है, वीरता का परिणाम यह है कि आटों पहर मृत्यु का सामना बना रहता है, फिर परिणाम का सोच क्यों ? भग- वान वाल्मीकि कही गए हैं कि 'नाशान्ता संचयाः सर्वे पतनान्ताः समुच्छ्रयाः । संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तन्तु जीवितम् ।' इसी भांति के परिणाम सोचने ही वाले तो घर बार, जाति परिवार सम्बन्धी सुख सम्पत्ति छोड़ २ बन मे जा बैठते हैं और षटरस भोजन छोड़ २ सूखे पत्तों से पेट भरते हैं। ऐसों की बातें मानना उनके पक्ष में क्योंकर हित कर हो सकता है जो संसार में रह कर अपना तथा अपने लोगों का जीवन आनंद में बिताया चाहते हों। ऐसों को तो सब के उपदेश छोड़ के हमारी ही शिक्षा माननी