पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३७

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मार २ कहे जाओ नामदं तो खुदा ही ने बनाया है ] तो शुद्ध एक बर्धा तेल गले महंगा'। अतार के यहां वरपों की सड़ी दवायें, सुंदर ऊख का शहद, खालिस शिरे का शबंत और गङ्गा जी का अरक तो एक साधारण बात है। संवत् १९३६ में बीमारी बहुन फैली थी, तब बहुतेरे महापुरुषों ने लसोरे की गुठली पर अमरस चिपकाय के आलूबुखारे बनाये थ और बड़ी कठिनाई से पैंसा के तीन २ देते थे। क्यों न देश का देश निर्वी न हो जाय ? रोगी राम कहते हैं, हकीम जी की दवा से फायदा नहीं होता। फायदा कहां मे हो, दवा तो यार हो लोगों के यहां से आवंगी। हाय ! यह भी तो नहीं हो सकता कि सब काम अपने हाथ ही से किये जायं। संसार में कोई किसी का विश्वास न करै तो भी तो काम नहीं चल सकता। पर विश्वास कीजिये किसका, यहां तो वही लेखा है कि 'हुशियार यारे जानी यह दस्त है ठगों का । यां टुक निगाह चूकी और माल दोस्तों का' । 'सबको ठग बनाते हो ? ऐसा न हो कि कोई बिगड़ जाय ।' अरे भाई ऐसे डरने लगते तो यह काम हो क्यों मुड़ियाते ? यहां तो खरी कहना माथे के अक्षर ठहरे । कुछ हो हमसे तो बिना कहे नहीं रहा जाता कि अपने मन के धन के लिये ऐसे अनर्थ करना कि दूसरों की तन्दुरुस्ती ( स्वास्थ्य ) में भी बाधा लगे, केवल लोभी का नहीं बरञ्च महा अबम का काम है। इममें परलोक ही अकेला नहीं बिगड़ता, दुनिया में भी सान जाती है। अन्य देशी लोग बेईमान बनते हैं । रोजगार जैसा सावधानी और ईमानदारी से चलता है वैसा इन अंधेरों से सपने में न चल सकेगा। हमेशा तीन खाओगे तेरह की भूख बनी रहेगी। विश्वास न हो तो जैसे अपनी रीति पर अब तक चले हो वैसे ही जी कड़ा करके कुछ दिन हमारी बूटी का भी सेवन करो तो देखो कैसा मजा होता है, कैसे २ लाभ उठाते हो । हम ब्राह्मण हैं । हित की कहते हैं । हमारी मानोगे तो धरम मूरत घरमा औतार हो जाओगे नहीं तो कोई अंगरेज सुन पावैगा तो 'डेम फूल' बना के मनवावंगा । वह मानना और तरह का होगा, बस आगे तुम जानो तुम्हारा काम जान । खं. १, सं० ४ ( १५ जून, सन् १८८३ ई०) मार २ कहे जाओ नामर्द तो खुदा ही ने बनाया है राम २ ! क्या मनहूसी की बात निकाल बैठे। आखिर वही हो न । सियारों के मुंह कहीं मंगल निकलते हैं ? न सूझै न बूझे मुंह में आया सो बके सिद्ध । जानते नहीं हो, हम उन लोगों के बंश के हैं जो अपने समय सारे भूगोल के शिरोमणि थे ? बस