पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३७०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३४८ [ प्रतापनारायण-प्रयावलो अवलम्बन करने वालों को बुरा ही समझे तो उसकी मूर्खता है। क्योंकि एक तो संसार के किसी गुण वा किसी वस्तु के परमाणु का वस्तुतः अभाव हो नहीं सकता, सब बातें और सभी चीजें किसी न किसी दशा में सदा ही से चली जायंगी। इस न्याय से छल भी सदा ही से होता आया है और होता रहेगा और जो बात अपने दूर किए दूर न हो सके उसे दुर दुर करना अदूरदर्शिता है। दूसरे यदि छल करना बुरा है तो दूसरों के छल में फंस जाना भी बज मूर्खता है । एवं इस कलंक से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि छल के तत्व को इतना समझता हो कि उसकी आंच अपने ऊपर किसी प्रकार न आने दे । इस रीति से भी छल का सीखना एक आवश्यक कर्तव्य है। नहीं तो यदि हम छली कहलाने से बचे भी रहेगे तो प्रत्येक हली के छल में आ जाने वाले निरे मूर्व कहलाने से नहीं बच सकते । अस्मात् छल का सीखना अवश्य है चाहे दूसरों के साथ करने को चाहे दूसरों के हाथ से बचने को ! हां सीखने बैठे तो थोड़ा सीखना और करने बैठे तो थोड़ा करना वाहियात है क्योंकि खुल जाने पर बना बनाया खेल बिगड़ जाता है । इससे इसका अभ्यास इतना कर्तव्य है कि कभी चूक कर 'उघरे अन्त न होम निबाहू,कालनेमि जिमि रावन राह' का उदाहरण न बनना पड़े। और अत्यन्त वैकट्य वालों के साथ भी इसका आचरण पाप है। क्योंकि यह बड़ी भारी चतुरता और बड़े भारी अनुभव से प्राप्त होता है एवं बड़े ही भारी काम आता है अतः छोटे ठौर पर इसका काम में लाना इस की बिडम्बना करना है और इतने भारी महान गुण की विडम्बना कर के अपनी बिडम्बना कराने से बचना असम्भव है। जो लोग अपने कहलाते हैं, जो अपना आश्रय किए बैठे हैं, जो अपने विश्वास पर उनके साथ छल किया तो तो मानो अपने तीक्ष्ण एवं सुचालित शस्त्र को अपने ही ऊपर चला लिया। यों ही छोटी २ बातों में छोटे २ अभावों की पूर्ति के अर्थ वा छोटी २ वस्तुओं की आशा पर इसका काम में लाना भी व्यर्थ है । क्योंकि जो बात बहुधा की जाती है वह प्रगट हुए बिना नहीं रहती और इसका प्रगट होता दुःख, दुर्नाम, दुर्दशा की जड़ है। अतः बड़े से बड़े अवसरों पर दूर से दूर वालों के साथ बर्ताव में लाने के निमित्त इसका संचय कर रखना परम पांडित्य है । यह एक ऐसा अनोखा शास्त्र है जो देखने में गुलाब के फूल की भांति सुन्दर और कोमल जान पड़ता है पर काम में लाने के समय बड़ी २ और बहुत सी तोपों को तुच्छ कर देता है। और इसकी प्राप्ति का उपाय यह कि इसके संचालक मात्र से मेल जोल रक्खे हुए उनके प्रत्येक रंग ढंग देखता रहे। वस इस रीति से इसे अपने हाथ कर लेने में अष्ट प्रहर संलग्न रहिए और चलाने के समय इतना ध्यान रखिए कि शतघ्नी के द्वारा मच्छर मारना शोभा नहीं देता तथा यदि चलाने को जी न चाहे तो दूसरों को चोट से रक्षा पाना भी अति ही श्रेयस्कर है । फिर हम क्योंकर मान लें कि छल बुरा है । यदि किसी बड़े ही विद्या बुद्धि विशारद के मुलाहिजे से मानना ही पड़े तो इतना ही मानगें कि कच्चों के लिए बुरा है, वास्तव में नहीं। और मान लें कि बुरा है तथापि अच्छी रीति से व्यवहृत करने पर संखिया भी अनेक रोग हरती है और शरीर के पक्ष में अमृत