पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३७१

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एक सलाह ] ३४९ का काम करती है कि नहीं ? यों ही सब वस्तुओं को भी समझ लीजिए। जैसे प्रत्येक भले से भले कार्य व पदार्थ में कुछ न कुछ बुरा अंश और बुरे से बुरे में मला अंश होता है वैसे ही इस में भी उन्नति और रक्षा का भला भाग अधिकतर है। जिसे प्रतीति न आवै वुह आप खोल देखै फिर देखें कैसे कहता है कि छल में बुराई ही बुराई है। खं० ८, सं० ८ ( मार्च, ६० सं० ८) एक सलाह (२) भारत के सार्वदेशिक महत्व का मूल कारण सदा से ब्राह्मण वंश है और यह देश जब सुधरेगा तब इसी के सुधारे सुधरेगा । उन्नत्याभिलाषियों के पक्ष में अन्यान्य उपायों की उपेक्षा यह उपाय अधिकतर शीघ्र एवं पुष्ट फलदायक है कि ब्राह्मण कुल का साहस बढ़ाया जाय । हमारे इस कथन में हम जानते हैं कि थोड़े से उन लोगों के अतिरिक्त, जिनके दिमाग में विलायती हवा पूर्णरूप से समा गई है, और किसी सहृदय विचार- शोल को विरोध न होगा। सतयुग त्रेतादि के महषियों को परम पवित्र चरित्र तो बड़ी बात है, आज के गिरे दिनों में भी आयत्व को आश्रय देने वाले अधिकतः यही महात्मा हैं । राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक सदनुष्ठानों में देखिए तो इन्ही की संख्या अधिक देख पड़ेगी। उत्तमोत्तम पत्र बहुत कर के इन्हीं के द्वारा संचालित हैं तथा वेद शास्त्र पुराणादि का संरक्षण जितना कुछ हो रहा है वह इन्ही के आश्रय में हो रहा है । फिर क्यों न कहिए कि आज भी सबसे अधिक प्रतिष्ठापात्र यही हैं। जो लोग इनकी निंदा करके महिमा घटाने का मानस रखते हैं उनकी चेष्टा निरी व्यथं है। यदि ब्राह्मण कुछ नहीं करते तो दूसरी ही जातियों ने कौन करतूत कर दिखाई है ? फिर क्यों न इनका उचित आदर करके इन्हें प्रोत्साहित किया जाय ? सच पूछो तो यही एक देशोन्नति के लिये बड़ा भारी कर्तव्य है और इसी विचार से अनेक सन्ननों ने ब्राह्मण हितैषिणी सभा, ब्रह्म वंश महोत्सवादि की नींव डाल दी है तथा ब्राह्मण' कांफरेंस इत्यादि का स्थापन करने में दत्तचित्त हो रहे हैं। पर वह बड़ी २ बातें जैसे 'बड़े २ कामों की सिद्धि का मूल है वैसे ही बड़े व्यय और बड़े ही श्रम के द्वारा साध्य हैं अथच बड़े अनुष्ठानों में बिलंब देख कर छोटे २ कर्तव्य न करते रहना नीति विरुद्ध है । एतदनुसार हमारी संमति में जब तक बड़े २ उपायों के लिये दौड़ धूप, सोच बिचार हो रहे हैं तब तक इतना तो करी उठाना चाहिए कि ब्राह्मण लोग आपस में तथा अन्य ब्रह्मभक्तगण ब्राह्मणों को जब पत्रादि लिखा करें तो केवल 'पंडित' अथवा 'महाराज तथा 'जी' वा 'महाशय' ही आदि न लिख के विद्वानों, सच्चरित्रों और प्रतिष्ठित पुरुष